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________________ [ १४ ] पवित्र ज्ञानमय ! मैं 'मैं 'ज्ञानमात्रस्वभावी हूं, अव विकल्प का क्लेश नहीं सहा जोता। पूर्व संस्कार'.. मुझे माही तो नहीं बना रहे परन्तु भीरु और अधीर वना रहे हैं। हे शक्तिमय ! तुम सदा ही मेरे नयनपथ में रहो। १३-५७६. हे परमात्मन् ! तू ही स्वाश्रित है, पूर्वज्ञ है और परमसुखी है, क्योंकि आप स्वरूपस्थ हैं। १४-७३८ हे चेतन्य प्रभो ! तेरी दया सब प्राणियों पर है कि तू अनादि अनिधन सब में विराजमान है परन्तु जो तेरा दर्शन कर पाते हैं वे अलौकिक फल प्राप्त कर लेते हैं। १५-७४२. परमात्मा या शुद्धात्मा की भक्ति से दूर रह कर कोई विरक्त नहीं है। सकता। १६-७५२: नास्तिक के जाप नहीं अर्थात् जो ब्रह्म (आत्मा) के सहजम्वरूप, परलोक व परमात्मा को नहीं मानते हैं
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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