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________________ [ २८२ ] अशान्ति के बिना नहीं होती, समझदार तो ऐसी चेष्टा करते हुए भी तुम्हें अशान्त ही समझेंगे । ५-१७६, विचार के अनुकूल वस्तुस्वरूप बनाने में अशांति है और वस्तुस्वरूप के अनुकूल विचार बनाने में शान्ति है। ६-१८१. निर्दोष, ब्रह्मचारी ही शान्ति प्राप्त कर सकता है, ब्रह्मचर्य निर्दोष पालने के लिये ब्रह्मचर्यव्रत की ५ भावनायें (स्त्रीरागकथाश्रवणत्याग, स्त्रीमनोहराङ्ग निरीक्षणत्याग. पूर्वरतस्मरणत्याग, · कामोद्दीपकेष्टरसत्याग, स्वशरीरसंस्कारत्याग) भावो और सोचो कि उन भावनाओं में से कौन कौन भावना कार्यरूप में परिणत हुई, शेष भावनाओं को भेदविज्ञान, वस्तुस्वरूपावबोध आदि से परिणत करने का यत्न करो। ७-२२४. मनोहर ! व्याधि और मृत्यु का विश्वास नहीं कत्र श्राजाय अतः शीघ्र ही आत्मशान्ति पाने का उधम कर। ॐ ॐ 卐
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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