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________________ [ २६८ ] प्रवृत्ति करने में विलम्ब मत करो। ८-२६८, जो परसंगति में रत हैं वे बंधवर्द्धक हैं और जो निजसत्ता में लीन हैं वे सहजमुक्त हैं निजसत्ता में लीन होने वाले के स्वयं ही ग्राह्य ग्रहण हो चुका व त्याज्य छूट चुका । ह-३३६. आत्मस्वभाव पर दृष्टि देकर अपने को अमर सुखी निरोग अनुभव करो इससे मृत्यु दुःख व रोग की चिन्ता व कल्पना विलीन होगी और धीरता उत्पन्न होगी। १०-३४५. अपने को आदर्श या अच्छा साबित कर देने के अर्थ पर की प्रसन्नता के लिये कार्य करने की प्रकृति जब तक रहेगी शांति का लेश भी नहीं हो सकता। अतः स्वात्म दृष्टि का हो उद्देश्य रहना चाहिये । ११-४११. यह शरीर तो क्षणिक व अहित एवं. पराधीन है इसकी सेवा में अपने को बरबाद मत कर किन्तु इसके द्वारा अविनाशी, हितस्वरूप और स्वाधीन पद पाने का प्रयत्न कर, तुम्हारे स्वस्थ रहने पर यह शरीर भी स्व
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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