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________________ [ २११ ] ७- ४४. पर पदार्थ दुःख का कारण नहीं किन्तु परपदार्थ में जो आत्मबुद्धि है वह दुःख का कारण है क्योंकि जिसे हम अपना नहीं समझते नष्ट होने पर भी दुःखी नहीं होते, और नष्ट हुई भी वस्तु अपनी ही थी ऐसी श्रद्धा में में दुःख होने लगते । 卐送5 ८ - ३६२. जिसे सर्वज्ञ की श्रद्धा नहीं वह अपनी वास्तविक ता व विज्ञता को नहीं समझ सकता, वृथा ही सगर्व बना रहता है । फ फ ६-४६६. प्राणियों को जो भी क्लेश है वह मोह परिणाम के क्षोभ का क्लेश है आत्मा को बाहर से कोई विपदा नहीं आती किन्तु उसी के उपयोग का जो मिथ्यात्व परि मन है वह ही मात्र आकुलता है इस तत्र पर श्रद्धा नहीं करने वाले अँधेरे में हैं अतः उन्हें इतस्ततः भ्रष्ट होकर क्षोभ मे हा पड़ा रहना पड़ता है । ॐ फ १०- ५४५. सत्य श्रद्धान स्वयं सुख स्वरूप है, यथार्थ श्रद्धारूप उपयोग करो सुखी हो जावोगे, चिन्ता में क्यों बैठे ? सुख का मूल उपाय यह ही है उपयोग बदल, आत्मदृष्टि
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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