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________________ [ २० ] किया गया है। इसलिये आपका नाम सहजानन्द पड़ा। इसके अतिरिक्त जब आप व्रती सम्मेलन में भाग लेने के लिये फरवरी सन् १९५१ ई० को फोरोजाबाद पहूँचे वहां आपके गुरु पूज्य श्री वर्णी जी ने आपको परमानन्द के नाम से पुकारा। स थ हो यह बात भी जची की 'परम' की अपेक्षा स्वाभाविक अर्थात् 'सहजा अच्छा प्रतीत होता है। अतः आपको आपके सहबासी "सहजानन्द" पुकारने लगे। ___ आप अपना कल्याण तो कर ही रहे हैं परन्तु मोहान्धकार में डूबे हुए संसारी प्राणियों का कल्याण कैसे हो सदैव यही विचारते रहते हैं। जहां भी जाते हैं यही उपदेश देते हैं कि अगर सुख और शांति प्राप्त करना है तो जीवन को धर्ममय बनाओ । सर्वसाधारण धर्म के विषय में बिल्कुल अन्धकार में है। लक्ष्य स्कूल व कालेज की शिक्षा की ओर है और धार्मिक शिक्षा की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखते । परिणाम यह हो रहा है कि स्कूल और कालेज के विद्यार्थी धर्म नाम की वस्तु से बिलकुल अपरिचित रहते हैं और दूषित वातावरण में रहने वाले ये विद्यार्थी विषय भोगों के गुलाम बनकर अपने जीवन को बरबाद कर देते है। व्यापारी वर्ग भी अर्थ संचय और विपय भोगों में इतने संलग्न रहते हैं कि जीवन का उद्देश्य क्या है इसको बिलकुल ही भूल जाते हैं। ऐसे ही विद्यार्थियों व व्यापारियों का जीवन सुख और शांतिमय बनाने के लिये
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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