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________________ [ २२६ ] १३-१३६. तृष्णा के अनुकूल अर्थ आदि की प्राप्ति अनिश्चित है अतः तृष्णा व इच्छा करना मूर्खता है । १४-२४१. कुछ भी करने की इच्छा न रहना ही कृतकृत्य ता है क्योंकि कृतकृत्यता का शब्दार्थ यह है-जो करने योग्य कर चुकना-सो करने योग्य यही है-जा कुछ भी करने की इच्छा न रहना, इसलिये कृतकृत्यता का भावार्थ वही सीधा और स्पष्ट है । १५-३१८. जो जितना अधिक खुशामद चाहेगा या करा वेगा उसे उतना ही परेशान होना पड़ेगा। १६-३८५. इच्छा क्षणिक है, इच्छा के काल में तृप्ति नहीं, जो वात नियमविरुद्ध है वह होना नहीं इच्छा कर पाप मत कमावो । जो बात न्यायसंगत है, होना है व होगा, इच्छा कर आकुलित मत होतो, स्वरूप से च्युत होकर संसार मत बढ़ावा । इच्छा करना हर हालत में व्यर्थ 卐 ॐ ॥ १७-३८६. इच्छा की पूर्ति होना या इच्छा का नाश होना
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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