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________________ [ २१६ ] ६ - ६१४. जो जमघट दिखता है न वह तत्त्व है और न उसका देखने वाला वह तत्त्व है, दोनो ही संयोगज पर्याय हैं वास्तविक याने शुद्ध पदार्थ नहीं हैं । फ ॐ फ १० - ६३४. मुझे (इस पर्याय को) कोई न जाने कोई न माने किसी को भी परिचय न हो क्योंकि होती भी क्या भलाई है ... ... मेरी... उन बातों से...: जगत धोखा का नाटक है । फॐ फ ११- ६८६. संसार में जो कुछ दीखता है वास्तविकता से देखो तो सार का नाम भी नहीं । ॐ १२- ७२४. संसार में सभी चौकीदार या मुनीम मालूम हो रहे हैं, यहां तो कोई मालिक ही नहीं मालूम पड़ता । ठीक है, यदि सत्य स्वरूप में जगत हो तो मालिक की भी बात चलती या होती । फ्र ॐ 5 १३- ४५७. मैं "मनोहर" नहीं हूं, इन शब्दों से जो वाच्य ख्यात हैं वह माया है, अहित है, इसमें बुद्धि रखने से ही दुःख होता है, मलीनता का प्रादुर्भाव यहीं से है । 1 5 5
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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