SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १६६ ] ४२ प्रशा १- ४१६. निज के अर्थ की तो बात क्या यदि पर के अर्थ भी पर की आशा छोड़ दोगे तब सुखी रहोगे और मनुव्य जन्म का फल पा लोगे अन्यथा वही काम करते करते मर जावोगे जो काम चिरकाल से करते आये लाभ को बात कुछ न हुई । 55 २-४२१. धन परिवार के लोभ से अधिक दुर्जेय लोकेपणा (लोकों की दृष्टि में भले जचने की आशा) है; लोकेषणा का परिणाम दूर किये बिना लेश भी कल्याण नहीं है । लोकेपणा ही समता की प्रबल बाधिका है । फॐ फ ३-४२८, हे आत्मन् ! तुम सहजसौख्यमय हो; ' जब तुम पने आप सुखी नहीं हो सक रहे तब क्या पर पदार्थ से सुखी हो जावेगे ? 5 ॐ फ ४ - ६८६, दूसरे की आशा पर जीवन की निर्भरता मानने
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy