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________________ जी को स्वर्गवास हुए १२ वर्ण हो चुके थे अतः बहुत से ऋणों की मियाद समाप्त हो चुकी थी। आपने ओरछा रियासत के राजा को एक प्रार्थना पत्र लिखा कि मैं वालिग होगया हूँ। अतः पुराने ऋणों की मियाद बढ़ा दी जाये ताकि मैं उन्हें वसूल कर सकू। राजाज्ञा आपके अनुकूल हुई। फिर भी आपके कोमल हृदय ने आपको आज्ञा नहीं दी कि किसी पर नालिश करके रुपया वसूल किया जा सके। व्रती मनोहर लाल : पहली स्त्री का संसर्ग अधिक दिन तक न रह सका । २० वर्ष की आयु में वह चल बसी । इच्छा न होते हुए भी घर वालों (विशेष कर स्वसुर) के आग्रह से दूसरा विवाह कराना पड़ा । भाग्य में कुछ और ही था । वह भी ६ वर्ष पश्चात् जब आप लगभग २६।। वर्ष के थे आपका मार्ग निस्कंटक बना कर चली गई । अब आपने पूर्ण निश्चय कर लिया कि ब्रह्मचर्य से रहेंगे। इसी समय आपने कुछ पद्य बनाये जिनका संग्रह 'मनोहर पद्यावलि' में किया गया है जिससे उनके उस समय कितने वैराज्यपूर्ण विचार थे इस बात का ज्ञान होता है । घर वालों व गांव वालों ने तीसरे विवाह के लिये जोर दिया परन्तु यहां तो विचार बहुत ऊंचे चढ़ चुके थे। आपने एक न सुनी । आसाढ़ शुक्ला पूर्णिमा सं० २००० को सिद्ध क्षेत्र श्री शिखर जी पहुँच कर आपने पूज्य गुरु श्री महावी जी के समक्ष ब्रह्मचर्य व श्रावक के व्रत धारण किये।
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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