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________________ [ १६६ ] वाला अन्य कोई नहीं है, अपने आप से बात करो इष्ट . अनिष्ट कल्पना हटा लो इस उपाय से सुखी हो जाओगे, अन्य चेष्टा में चाहे करोड़पति होजाय या लोकमान्य बन जाय किन्तु शांति संतोष नहीं पा सकता। ॥ ॐ ॥ ५-८०५, असतोष ही दरिद्रता है, दरिद्रता के विनाश का उपाय संतोषभाव ही है। ६-८२०. संसार में सार क्या है ? जिसके लिये असंतोष किया जाय । 卐 ॐ ॐ ७-८३५. दूसरे की स्वछन्द प्रवृत्ति से असंतुष्ट होने की आदत न डाल कर अपनी स्वच्छन्द प्रवृनि से असंतुष्ट रहो, अपनी स्वच्छन्द प्रवृत्ति का असंतोष संतोष का कारण होगा। ८-८३७. जो सबसे बड़ा और मालिक बनना चाहेगा वह संतोष नहीं पा सकता। ६-८४१. जहां संतोप है वहां चैतन्य भगवान के दर्शन हैं
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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