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________________ [ १३२.] २५ आत्म विभव १-१२८, धनवान् और गरीब आपेक्षिक हैं, वास्तविक नहीं; क्योंकि कोई भी मनुष्य उससे गरीच पर दृष्टि डाले तर धनवान् जचता और धनवान् पर दृष्टि डाले तब गरीब जचता । वास्तव में तो जिसके ज्ञानसंपत्ति का विकास है वह अमीर है और जिसके ज्ञानसंपत्ति का विकास नहीं वह गरीब है। २.-१३६. वहिरात्मा सभी एक से गरीब हैं और परमात्मा सभी एक से अमीर हैं; अमीरी में तारतम्य असंयत आत्मज्ञानी से लेकर क्षीण कषाय संयत तक (परमात्मत्व पाने से पहिले तक) है परन्तु उनमें सम्यक्त्व से गरीब कोई नहीं है। ३.-१६७. हे देव ! मुझे अनंत दर्शन की चाह नहों, किन्तु अपनों ही दर्शन करना चाहता हूँ।
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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