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________________ [ ११५ j विगाड़ ही तुम क्या कर सकते हो अपने पर कुछ दया तो करो । फ्रॐ फ्र ८-७६४, क्रोध एक महान अंधकार है जिसमें सत्पथ नहीं सूझता इसीलिये क्रोधी खुद मर मिटता और दूसरों के परेशान करता । 55 ६-७६५. क्रोध एक अग्नि है जिससे आत्मा के सब गुण जले से है। जाते हैं । क्रोधी के जीवन में शान्ति नहीं प्राप्त हो सकती - एक क्रोध को छोड़ो - सब मामला साफ होता चला जावेगा। 东海卐 १०- ७६६. क्रोध के समय मौन रहना या समय टालना उचित है,... और... कुछ समय श्रात्मस्वभाव और जगत का यथार्थ स्वरूप व अपनी मुसाफिरी का विचार करो । ॐ फ ११-८४०, रे क्रोध ! तेरे में बड़ी ज्वाला है सारे गुण फूक देता है !... तू उस ज्वाला में नहीं जल पाता, अग्नि भी तो ब्वाला में स्वयं-जल मर जाती है; तू अग्नि ही जैसा बन
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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