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________________ [ ११० । ५-३५४. जो दूसरों के उपभोग एवं उसमें आसक्त होने वालों में ईर्ष्या करता है वह उस वस्तु से-लोभ से-कपाय से विरक्त कैसे कहा जा सकता है । ६-४२६. जहां पर कषाय हुई वहीं पर. उसे नष्ट कर दो, अंन्य वस्तु पर मत आजमावो अन्यथा शान्ति तो दूर रहो अशांति ही बढ़ती जावेगी। ७-४३४. यदि दूसरे के प्रति तुम्हारे क्षोभ परिणाम हो तब दूसरे को बुरा न समझो अपने क्षोभ परिणाम को बुरा समझो और यह भावना करो कि इसका तो भला ही हो और मेरे इस क्षोभपरिणाम का नाश हो, क्योंकि मेरे अनर्थ का कारण मेरा क्षोभपरिणाम ही है अन्य नहीं । ---४७४. धनिकों को देख कर अल्पधनी को, ज्ञानी को देख कर अल्पज्ञानी को, प्रसिद्ध को देख कर अल्पप्रसिद्ध को बलेश होने लगना संसार को पद्धति है व मूढ़ो का मेला ॐ ॐ ॐ ६-४६४. तुम्हें करना कुछ नहीं केवल चंचलता समाप्त
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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