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________________ [ १०० ] ४-१००. हम किसी भी पर पदार्थ में नहीं ठहरे और न किसी की परिणति से मेरी परिणति होती, परन्तु पर में ठहरा या पर परिणति से अपनी परिणति होती ये दोनों बातें मानने (भ्रान्तबुद्धि) में ही हैं। जिनके यह भ्रम है वे मिथ्या दृष्टि हैं, अभ्रान्त शिवपथिक हैं। . 卐 ॐ 卐 ५-२५६. जो कुछ हम करते हैं उसका फल हम ही को होता है, यदि हम संक्लेश भाव करें तो वह हमारे अकल्याण के लिये है, यदि विशुद्ध भाव करें तो वह हमारे कल्याण के लिये हैं, जो कुछ भी क्रिया करके दूसरों पर अहसान डालना महती मूर्खता है। भ्रम हटावो और सुख के मार्ग पर चलो। ६-२६०. जो कुछ दूसरे करते हैं उसका फल उन्हीं में होता है, उस क्रिया से अपना लाभ या हानि मानना मूर्खता + ॐ ॐ ७-२७६. पर वस्तु को ग्रहण करने वाला चोर कहलाता, परन्तु तुम तो सतत पर को अपनाते, धिक्कार ऐसी चोर जैसी जिन्दगी को।
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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