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________________ [ ६५ ] काल में मिथ्यादृष्टि के रागभाव का सद्भाव होने से अनंतकर्म का बंध होता। ॥ ॐ ॥ ५-२३३. जो बड़भागी ज्ञानवल से उपभोग में राग न करे तो उस का उपभोग निर्जरा ही कराता है। ६-२६१. दूसरों को दुखी करने के परिणाम से पाप होता व सुखी करने के परिणाम से कदाचित् 'पुण्य होता परन्तु विषयसाधन के परिणाम से पाप ही होता चाहे विषयसाधन में दूसरों को सुख हो या दुःख हो । ७-४८६. जिस शरीर के कारण इन्द्रियविषयमुग्ध बनकर तुमने अपना पात ही किया, अपवित्रता ही बढ़ाई, उस शरीर में अब इष्ट बुद्धि क्यों रखते ? शरीर रोगी रहे तो बया या तपस्या से शीर्ण या तप्त हो तो क्या, तुम्हें तो इस शरीर को पृथक् ही समझकर अपने में स्थिर रहना चाहिये। 卐 ॐ ॥ ८-६५१. ज्ञानी पुरुष भी विपयकषाय के वश हो कर कायर ही है , कायर पुरुष शस्त्रधारी भी होय तो भी वैरी का
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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