SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ८३ ] परिणमन होना वह तो हो हो रहा था, हो ही रहा है, होता ही रहेगा, तुम पर द्रव्य में ऋतु चद्धि करके संसारी दुःखी न बनो । के परिणमन के निमित्त से किसी का निमित्तनैमित्तिक भाव का फल है, # फ्रॐ फ ८- १५६. यदि कल्पनायें ही उठे तो उठने दो पर उन्हें कल्पना तो जाना और उसका ही कंथचिन कर्ता माना और फिर भेदविज्ञान से अस्त कर दो किन्तु कल्पना के याश्रय पर द्रव्य में कर्तृत्वबुद्धि कभी मत करो । फ्रॐ फ ६ - १५७, मनोहर ! पर पदार्थों की अवस्था करने का भार तुम अपने ज्ञान में लेकर दुखी क्यों होते हो ? परमात्मा प्रभु के ज्ञान में ही यह सच ( पदार्थ की अवस्था होने का ) भार रहने दो। वह अनंत शक्तिमान् है इस भार से प्रभु का बाल बांका नहीं हो सकता अर्थात् वह त्रिलोक व त्रिकालवतों गुणपर्यायों को जानता हुआ भी अनन्तकाल तक स्वरूप से च्युत नहीं हो सकता, जो कुछ होना है वह सर्वज्ञ देव जानते हैं अतः जो प्रभु जानते हैं वही होगा तुम परचिन्ता करके आकुल मत हो । फ्रॐ ॐ
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy