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________________ [ ७५ 1 कहा है, यदि कोई कायकृत पाप न करके भी मनाविकार को न हटाये या हटाने का प्रयत्न न करे तब वह अधम ही है। ५-५८. व्रत लेने के बाद यदि पूर्ववत् विकार रहा तब समझो कि हम वहीं के वहीं हैं. कोई उन्नति नहीं हुई। ॐ ॐ ॐ ६-७५. ब्रह्मचर्य की रक्षा में मनोविकार के दूर करने में उपधाम परम सहायक होता है, उपवास शक्ति के अनुसार करना चाहिये, शक्ति से बाहर करने पर संक्लेश का निमित भी बन सकता है। ७-१३०. जिसने पोता के पोता को देख लिया है उसे लोग पुण्यात्मा कहते हैं और मर जाने पर सोने की सीड़ी चिता पर रखते, परन्तु यह नहीं जानते कि उसने तो लड़के का मोह करके व पोता का व पोता के लड़के का व पोता के पोता का मोह कर ५ पोढ़ी का मोह कलंक वसा कर अधिक पाप कमाया है, निर्माही तो स्वय पुण्यात्मा है वह धन संतान परिवार के कारण पुण्यात्मा ॐ ॐ ॐ
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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