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________________ [ ७२ ] खेद की बात है जो श्रेष्ठ मन पा कर भी सदुपयोग न करें। ४-६०८. अन्य भवों में किये हुए पाप मनुष्य भव में धोये (नष्ट किये) जा सकते हैं, यदि मनुष्य भव में ही पाप किये जावे तो उनका विनाश फिर कहां हो ? यह मनुष्य भव दुर्लभ है इसलिये मनुष्य भव को पाकर पापों के नाश करने में प्रान्मधर्म के पालन व वद्धन में ही उपयोग करो। | करा। ५-४५५. इस लोक में बड़प्पन सँभाला तो क्या हुआ ? बड़प्पन तो वही है जिसके बाद अवनति न हो, यदि परमार्थवृत्ति न रखी तब ढकासला अधिक से अधिक इस जीवन तक ही चल सकता, मृत्यु बाद तो नियम से खोटी दशा होगी। ___# ॐ ॐ ६-२७५, मनाहर ! यह मनुष्यत्व अति दुर्लभ है चिन्ता ग्रस्त रह कर जीवन व्यर्थ मत खाओ।
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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