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________________ [ ६८ ] ४-५१५. दीनता का कारण पर पदार्थ की आशा है, किमी भी वाहय पदार्थ से आत्मा का हित नहीं होता, प्रत्येक जीव अनत शक्ति वाला है, परन्तु पर्यायबुद्धि होने से अपनी अनंतशक्ति का सदुपयोग नहीं करते, चेतो श्रेयोमार्ग यद्यपि दुष्कर मालूम होता परन्तु उसका विपाक मधुर ही मधुर है। ५-५०४. हे ज्ञानधन ! तुम ज्ञेय पदार्थ जानने का क्यों परिश्रम करते हो ? ये ज्ञेय तो अवश होकर ज्ञान में प्रतिभासित होते क्योंकि ज्ञान और ज्ञेय का ऐसा ही स्वभाव हैं। ६-१६६. हे अनंतबली ! मुझे अनन्तबल मिले मेरी ऐसी कोई टेक नहीं परन्तु इतने बल का तो अवश्य विकास हो जो मैं अपने में ठहरा रहूं। ७-१७, मनोहर ! तुम पद पद पर यह विचार करने लगते कि मोह की शक्ति प्रपल है किन्तु तुम नहीं जानते ? आत्मज्ञान में वह अनन्त शक्ति है जिससे मोह क्षण में ध्वस्त हो जाता है और अनन्तकाल तक
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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