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________________ मोयगपडलियकराऽऽह तसे - [७] ‘पेच्छिस्समपुव्वदियं, कहमहमिय?' माहवो मुणिउं । देवि(वी)चेडीहि (ए) भणइ य, 'चलिया कहिंचि तुरगे 'त्ति ॥ सा पणया 'सुभगा होसु'त्ति कयासीसा साहइ सरूवं । तो कंचुई वि दरिसिउ' मिमस्स देहित्ति भणइ वडुमे । पत्ता तुहुत्तिमेत्तेण गोयमा (मोयगा ? ) ' तो बडू भइ ॥ 'जइ एवं तो देवी (वो) होही मम सामिउ 'त्ति सोउमिमं । कंचुइणुत्तं 'आ दुट्ठ ! वडुय ! णाऽमंगलं मोत्तुं ॥ जंपसि किमवि गमिस्सं, ताऽहं कुमरंतियं'ति वत्तु ओ । तम्मि गए नच्चंतो, भणइ वडू मोयगे दडुं ॥ ‘हे हे त(तु)ह थणकलसोवमेहिँ सुहमोयगेहिँ एएहिँ । तह तुट्ठोऽहं न जहा, वयंसलाहपउत्तीए' ॥ सोउं चेमं चेडी, ताडइ चंडीभि ( चंडेहि ? ) तह कडक्खेहिं । सो 'हा क(म) ओ'त्ति काउं, भणइ 'पुणेवं कक्खे ॥ ज(जं) मम पुज्जइ चोज्जं', सा भणइ 'हयास ! जइ न लेसि इमे । ताऽहमत्त (न्न) त्थ जाहं' सोउं सो भणइ 'न ते हियं तह वि ॥ ता राउलाउ वलिओ, गिहिस्समिमे धरेहि नियगेहे' । जायइ सा; अह बडुय - विवा (चा) राए अवसेरिओ कुमरो ॥ तसे संपत्तो, पिउलेहुत्तेजिउ त्ति भइ इमं । 'संदिट्टं ताएणं, कहमेगागी तुमं ति जओ ॥ सिंहो सहायरहिओ, निम्महिउं किन्न करचवेडाहिं । दंतीण मोत्तिएहिं, धवलइ धीरो धरावलयं ?' ॥ वडुणा 'जयसु'त्ति कए, कुमरो तं भणइ [ 'कत्थ राय'त्ति ] | [सो भइ ताव 'कुमर ! अहाऽवि न ] नज्जए सम्मं ॥ ता चेट्ठामो कन्नंतेउरहो चित्तसालियाऍ खणं' । कुमरो भणइ 'इहट्ठिए, मा कण्णा काइ पेच्छिज्जा' ॥ — भणइ वडू 'न विरुद्धं, कण्णाए दंसणं तु' तो दो वि । तत्थ ठिया जत्थोवरि, बंधुमई चिट्ठइ गवक्खे ॥ दडुं च चंदलेहा, तं भणइ 'तुहेस सामिणि ! सुदइओ । तो लोइऊण माए !, चित्तसु तं चित्तवट्टीए' || तं बंधुमई तद्दंसणूसुया कह वि सिढ (ढि ) लहत्थेणं । लिहिओ (उं) कुमरं सोउं च तग्गुणे 'किं लवंति इमे ? ॥
SR No.009889
Book TitleKahavali Pratham Paricched Pratham Khand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyankirtivijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages469
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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