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________________ अंक १] फारसी भाषामां ऋषभदेव स्तवन ____[२५ तुं मादर तुं फिदर बुध तुं ब्रादर तुं आसु । नेसि विहेलिय तई अवरि बीजे मोरइ कामु ॥४॥ महमद मालिम मंतरा इब्राहिम रहमाणु । इहं तुरा कुताबीआ मेदिहि मुक्यल्फरमाणु ॥५॥ फरमूद तुरा जु मेकुनइ मेचीनइ न सुधंग। खोसु शलामथ आदतनु अर्जदि छोडिय यंग ॥६॥ सादि न खस्मि नवा अगर तं कुय तुरा सलामु । बंदि पलात सु मे दिहइ वासइ न हर हरामु ॥७॥ जानूउरु यो मेकुसइ मिदिहदि सो न विहस्ति । बुचिरुक बिल्लइ दोजखी धंग बहुत तमु हस्ति ॥८॥ अस्तारां तेरीखु बदानु साले साते दीग सरानु । चिस्मदीदयं बुध रू तुरा बूदी कार सऊ बस मरा ॥९॥ माही उस्तुरु गाउ गाउनर खू [ग] पलंगो। आहू मुरवा मुरुगु सेरु गामेसि कलागो । मगस सितारक मारु बाजु गावसु ताउसग। ऊयजकु मखल्लु कतानु खइख सगु बत बुज मूसग । दुजख उसार नकासु जनि दरजी उ जरी हजामु । ते वासई जिम मेकुनई सिरिजिन तुरा सलामु ॥१०॥ शहरु दिह उलातु छत्रु खाफूर ऊदु मिसिकि जरु नवातु प्वाद रोजी दरास । कसब पिसि तुरा इं नो सरा मेखुहाइ रिसह हथमु दोस्ती वंदिने मेदिहीति ॥११॥ । इति श्रीजिनप्रभसूरिकृत-पारसीभाषया श्रीऋषभदेवस्तवनं समाप्तमिति । पं० लावण्यसमुद्रगणिशिष्य उदयसमुद्रगणि लिखितं । छ । छ । Aho! Shrutgyanam
SR No.009881
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 03 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1924
Total Pages290
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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