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________________ १४८] जैन साहित्य संशोधक. [खंड सं०७०५) में जिनसेनने हरिवंश पुराण की रचना समाप्त की थी। इन के समय तक मान्यलेट राजधानी नहीं हुई थी। पर दूसरे और तीसरे कृष्णराज मान्यस्नेट के सिंहासन पर हुए हैं। कृष्णराज द्वि० अमोघ वर्ष के उत्तराधिकारी थे, जिन्होंने लगभग शक सं० ८०० से ८३७ तक राज्य किया। इन के समय में मान्यखेट पुरी चालुक्य वंशी राजा विजयादित्य तृतीय द्वारा ल्टी और जलाई गई थी । कृष्णराज तृतीय के लियाशेलालंखों से शक सं० ८६२, ८६७, ८७३ और ८७८ के उल्लेख मिले हैं । उन का सब से अन्तिम उल्लेख शक सं० ८८१ का सोमदेव ने अपने 'यशस्तिलकचम्पू' में किया है । इन सबसे पहले की एक तिथे कृष्णराज के लिये मुझे कारंजा भंडार के 'ज्वाला मालिनि कल्प' नामक ग्रंथ में देखने को मिली, इस ग्रंथ के अन्तिम पद्य ये हैं अष्टाशत सैकषष्ठिप्रमाण शक वत्सरेवतीतेषु । श्री-मान्यखेटकटके पर्वण्यक्षयतृतीयायाम् ॥ १ ।। शतदललहित-चतुःशत-परिमाण-ग्रंथ-रचनया युक्तम् । श्रीकृष्णराज-राज्ये समाप्तमेतन्मतं देव्याः ॥२॥ इससे विदित होता है कि उक्त ग्रंथ की रचना शक संवत् ८६१ की अक्षय तृतीया को समाप्त हुई थी और उस समय मान्यखेट नगर में कृष्णराज ' राज्य करते थे। ये राजा कृष्ण. राज तृतीय के आतरिक्त और कोई नहीं हो सकते। इस प्रकार कृष्णराज तृतीय का राज्य काल कम से कम शक सं०८६१ से लगा कर ८८१ तक सिद्ध होता है। . हम ऊपर कह आये हैं कि पुष्पदन्त ने अपने समय के ‘तुड़िगु' अपर नाम कृष्णराज द्वारा चोड़ नृप के मारे जाने का उल्लेख किया है । राष्ट्रकूट वंशी राजा जैन धर्मानुयायी थे और इस समय के चोड़ नरेश कट्टर 'शैव' । दोनों खूब बलवान् भी थे। अतः दोनों बीच अक्सर हो युद्ध छिड़ा रहता था। कभी राष्ट्रकूटों की जीत हो जाती थी तो कभी चोड़ों की । मैसर प्रान्त के अतकर' नामक स्थान से एक शिलालेख मिला है जिस में ऐसे ही एक युद्ध का उल्लेख है। उससे विदित होता है कि शक सं०८७१ (सन् ९४९) में जब राष्ट्रकूट नरेश कृष्णराज और चोड़ नृप ' राजादित्य' के बीच युद्ध चल रहा था तब कृष्णराज के सहायक व उन के बहिनोई गंगनरेश 'बुतुग (भूतराय दि०) द्वारा राजादित्य की मृत्यु हुई । इसी शिलालेख के आधार पर सर विन्सेन्ट स्मिथने अपने 'भारत के प्राचीन इतिहास' में लिखा है कि कृष्ण तृतीय' के समय को राष्ट्रकूटों और चोड़ों की लड़ाई विशेष उल्लेखनीय है-क्यों कि सन् ९४९ में चोड़ गजा 'राजादित्य' की समरभूमि में ही मृत्यु हुई। क्या आश्चर्य यदि पुष्पदन्त ने अपने पुराण में इसी घटना का उल्लेख किया हो। प्रेमीजीने उत्तर पुराण के ५० वें परिच्छेद के प्रारम्भ का एक श्लोक उद्धृत किया है जिससे विदित होता है कि उस पुराण के समाप्त होने से कुछ पूर्व मान्यखेट पर किसी ‘धारा नरेश' ने चढाई की थी और उस सुन्दर नगर को नष्ट भ्रष्ट कर डाला था। हम ऊपर कह आये हैं कि 12 The Eastern Chalukya Vijayadityaiil (A. D. 844-888) boasts that he captured the Rashtrakúta Capital 'and burnt it; and the assertion seems to be borne out by other insoriptions. Imp. Gaz: Vol II, p.33. 13. Epigraphia Indica Vol. III, P.50. 14. V. Smith. E. H. I. pp. 424-430. १५ दीनानाथधनं सदा बहुधनं प्रोत्फुल्ल-वल्ली-वनम् मान्याखेटपुरं पुरंदरपुरीलीलाहरं सुन्दरम् । भारानाथनरेन्द्रकोपशिखिना दग्धं विदग्धप्रियम् । वेदानी वसतिं करिष्यति पुनः श्रीपुष्पदन्तः कविः । Aho! Shrutgyanam
SR No.009880
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages176
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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