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________________ बधा बन्धुओना अनुरागनो उपकार मानु भने तेनी साथे तेमनी जे प्रशंसनीय जिज्ञासाने संतोषी शकतो नथी ते माटे क्षमा पण मांगु; ए ज अत्यारे तो मारा माटे उचित कर्तव्य छ । । कार्यालयना प्रबन्धमां आ जातनी जे शिथिलता छे तेनुं कारण पण मारे ग्राहको आगळ प्रकट करी देवानी फरज रहे छे । ए शिथिलता होवानुं कारण कोई जातनो प्रमाद नहि पण सहायकनो जे अभाव छ, ते ज छ। घणा खरा बन्धुओ तो जाणता ज हशे के छेल्ला ३-४ वर्षथी मारुं कार्यक्षेत्र पूना अने अमदाबाद एम बे दूरवर्ती स्थळोमां समान भागे व्हेंचाई गएलु छे | पूनानुं मारत-जैन-विद्यालय जेम मारी समग्र सेवानी अपेक्षा राखे छे तेम अमदाबादनुं गजरात-पुरातत्त्व-मंदिर पण समन सेवा मांगे छ । तेमांथी ए बने स्थळे वर्षनो लगभग अडधो अडधो भाग रही हुं मारी अल्पशक्ति प्रमाणे ए बने संस्थाओनी अडधी सेवा बजावी रह्यो छु। आम आ संस्थाओना प्रबन्धमां ज हाल मारो समय मुख्यरीते व्यतीत थतो होवाथी जैन-साहित्य-संशोधकना प्रबन्धमाटे हुं वधारे समय काढी शकतो नथी अने तेथी ज उपर जणाव्या प्रमाणे एना कार्यमा अनियमितता अने अव्यवस्था थई रही छे । पत्रनुं दळ घणु मोटुं-आखं जाणे एक पुस्तक होय तेटलं मोटुं-होवाथी छपावतां ज घणो वक्त वह्यो जाय छे । जो कोई छापखानु नियमितरीते काम आपे अने तेवी ज रीते तेने पार्छ तपासीने तरत मोकलवामां आवे तो ज मांड मांड त्रण महिने एक अंक पूरो छपाय । पण मारी तो स्थिति पूना अने अमदाबाद वच्चे घडियाळना लोलकनी जेम महिने बब्बे महिने फरती रहे छेतेथी महिनामां थई शके तेटलुं काम त्रण महिने पण थई शकतुं नथी अने तेमां प्रेसवाळाओनी अनियमितता जे हेरान करे छे ते तो वळी बाकी ज रहे छे । उदाहरण तरीके-आ अंकनो केटलोक भाग पूनामां छपाया बाद बाकीनो भाग अमदाबाद छपाववो शुरु को त्यारे, प्रेसवाळाना कथन उपर आधार राखी, गई होळी पहेला ज ग्राहकोना हाथमां आ अंको पहोंचता करी देवानी इच्छाए पूनामां छपाएलो बधो भाग रेल्वे पार्सलथी अमदाबाद मंगाववामां आव्यो । पण ते प्रेस, कह्या प्रमाणे होळी सुधी काम पूरुं करी शक्यो नहि अने समय थए अमदाबाद छोडी मारे पूना आवqथयुं । एटले फरी ते बधू काम पाछं पूना आव्युं अने फाल्गुणना बदले आम ठेठ वैशाखमां आ अंक बहार पाडी शकायो । आवी एकंदर परिस्थिति छ । सने १९२० ना जान्युआरी मासमां पहेला खंडनो प्रथम अंक छपाववो शुरु थयो हतो अने ते वर्षना एप्रील मासमां ए अंक प्रकट थयो हतो । आजे १९२५ ना एप्रीलमां आ बीजा खंडनो ४ थो अंक प्रकट थाय छे-एटले लगभग पांच वर्षमां बे खंडो बहार पडया एम कही शकाय । . आ जातना साहित्य विषयक पत्रो सामान्यरीते बधा ज अनियमित के अर्ध-नियमित होय छ । इन्डियन एंटीकरी जेवा बहु-साधन-संपन्न मासिक पत्रो पण घणी वखते ६-८ महिना जेटली ‘लेइट' थई जाय छे तो पछी बीजाओ थाय तेमां तो नवाई ज शी । वळी आवा पत्रोना लेखो केटला बधा परिश्रमे तैयार थाय छे तेनी पण साधारण वाचकने तो कल्पना सुधां आववी कठिन । एक एक लेख वर्षोना अभ्यासना परिणामे तैयार थई शके छ । दश पन्धर 'पंक्तिओना लखाण माटे घणी वखते आखी लाईब्रोरयो खोळी काढवी पडे छ । एक एक पंक्तिना टाचण माटे काम पडे तो सो-पचास रुपियानां पुस्तको खरीदवां पडे छे । केटलीक वखते महिनाओनी महेनते तैयार करेला -लेखो एक आध दुष्प्राप्य पुस्तकना प्रमाण माटे वर्षो सुधी आमना आम फाईलोमां बांधी राखवा पडे छे । एटले आटली बधी महेनते तैयार थतां पत्रो के पुस्तको समयनी मर्यादाने ताबे जो न रही शके तो तेमां काई मोटो Aho! Shrutgyanam
SR No.009880
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages176
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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