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________________ अंक २] मेरुतुंगाचार्यनी स्थविरावली [ १३९ आ समय वीरनिर्वाण पछी ५८४ वर्षनो छे. तदनंतर श्री आर्यरक्षित १३ वर्ष. पुष्यमित्र २० वर्ष पट्टधर रह्या. आमणे यथार्थ रीते सूत्रार्थनो बोध कराव्यो हतो. आ प्रमाणे आपणे वी. रथी ६१७ मा वर्षमां आवीए होए. आ समये शक संवत्सरनी शरुआत थई. दोषयुक्त छे अने उल्लिखित गाथा मेळववानी जरुर छे.) साधारण रीते नीचे लखेल कथन उपलब्ध थाय छ:-- अगाउ (प्राचीन समयमां) चंद्रगुप्त राजाना समयमां बार वर्षनो दुष्काळ पडवाथी उत्कृष्टलब्धि (उत्कृष्ट ज्ञानना ग्रंथो) अने बीजा हजारो प्रकीर्णको नष्ट थयां. बहलस्स अने बलिस्सह आ बंने एकज व्यक्तिनां नामो हतां. स्थविरावलीमां आर्य मंगुनी पछी भिन्नशाखामां उत्पन्न थएला एवा आर्यधर्म, भद्रगुप्त, वज्रस्वामी अने आर्यरक्षितनां नामो मुकेलां छे. अने आम वानं कारण एटलंज हतं के ते व्याक्तिओ नामांकित या प्रधानपुरुष हता. रेवतिसिंह सूरि ते बह्मद्वीपकथी भिन्न छे. त्यारपछी वज्रस्वामीना समयमां फरीथी १२ वर्षनो दुष्काळ पडवाथी सिद्धान्तनुं व्याख्यान बंध थयु. परंतु ज्यारे फरी आबादो थई त्यारे स्कंदिलाचार्ये मथुरामां संघने एकठो करी फरीथी सिद्धान्तनो वाचनानो आरंभ कर्यो. अने आ वर्णन "जेसि इमो अणुओगो" थी शरु थती गाथा अनुसार मानवामां आवे छ. बीजी शाखामां, आर्यसुहस्तिना १२ अंतेवासीओमांना सुस्थित नामे पांचमा अंतेवासी हता. तेमनी द्वारा कोटिकगणनी उत्पत्ति थई. अने कल्पसूत्रमा एम जणावलं छे के एलावत्य गोत्रना आर्यमहागिरिने उत्तरथेरो नामना प्रथम अने षडुलुक उर्फे रोहगुप्त जे आठमा अंतेवासी हता तेओना उपरांत आठ शिष्यो हता. छेल्ला अंतेवासी षडुलुक उर्फे रोहगुप्तद्वारा कल्पसूत्रमा जणाव्या प्रमाणे त्रैराशिक शाखानो प्रादुर्भाव थयो. आवश्यकसूत्रमा भिन्नभिन्न निन्हवोनो समय नांचे प्रमाणे आपेलो छ:प्रथम निह्नव ( जमालि ) वीर प्रभुने केवळ ज्ञान थया पछी १४ मे दिवसे (? वर्षे) थयो. बीजो (तिष्यगुप्त) १६ वर्षे बीजो ( अव्यक्त) २१४ , चोथो ( समुच्छोदिक) २२० , पांचमो (गंग) २२८ , छटो (रोहगुप्त त्रैराशिक) ५४४ ,, सातमो ( गोष्ठा माहिल) ५८४ , आठमो (दिगंबर पंथ) ६०९ ,, हवे विचारो के षडलुक रोहगुप्त आर्यमहागिरिनो शिष्य होय तो ते समये वीर पछी ५४४ वर्षो केवी रीते व्यतीत थयां होय ? आर्यमहागिरि ए स्थूलभद्रना शिष्य हता. अने स्थूलभद्र उपर समजाव्या प्रमाणे वीरनिर्वाण पछी २४५ वर्षे उत्पन्न थया हता. आथी ( आर्यमहागिरिना ) अंतेवासीने वीर पछी ५४४ मा वर्षमा मूकी शकाय ज नहि. आ संदेहनिराकरण माटे बहुश्रुत विद्वानो ज प्रमाण छे. आज प्रमाणे बार वर्षना दुष्काळना अंते वज्रस्वामीए पोताना वज्रसेन नामना शिष्यने जाहेर कर्यु हतुं के--'ज्यारे तमने एक लाख रूपीआनी किंमतनुं भोजन मळे त्यारे तमारे हवे लोकमां समृद्धि (अथवा रेलचेल) थशे एम समजवू' एम कहीने एने संदेशो आपी मोकल्यो, ते शिष्य सोपारगमां वसता जिनदत्त नामना श्रेष्ठि (व्यापारी) ने त्यां गयो. तेनी ईश्वरी नामनी पत्नीए तेने झेर भेळव्या विना Aho! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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