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________________ १२८] जैन साहित्य संशोधक [खंड २ प्रकारनो निर्णय थई शके ए मने शक्य लागतुं नथी-के जे निर्णय आ महावीरनिर्वाणना समय साथे संबंध धरावती तेमज तेना उपर आधार राखती अन्य बाबतोने वधारे बंधबेसतो थाय. टिप्पण-आ निबंधना वाचकने जरुर लाग्युं हशे के में प्रो. गायगर (Geiger) ना महावंशना भाषांतरना ( London 1912 ) उपोद्घातनो बीलकुल उल्लेख कों नथी. वास्तवमां, मारे जणावयूँ जोईए के हुआ निबंध पूरो करी रह्यो त्यांसुधी में ते उपोद्घात वांच्योज न हतो, अने तेथी करीने मारां करेला केटलांक अनुमानो त्यार आगम च प्रो. गायगरे साबीत करेली बाबतोनी मात्र पुनरुक्ति रूपे जणाशे. परंतु आ प्रसिद्ध विद्वान् सिलोननी परंपराविषयक सघळी बाबतोर्नु अपूर्व ज्ञान धरावता होवा छतां तेमनी कालगणनात्मक तपासना मुख्य परिणाम साथे हु संमत थई शकतो नथी. बुद्धनिर्वाणनी मिति तरीके इ. स. पूर्वे ४७७ मा वर्षने मानवा माटेनां मारां सघळां कारणो-प्रमाणो-में मारा लेखमां आपलां छे. अने इ. स. पूर्वे ४८३ वर्षथी गणाता सीलोनना संभवित संवत्ना अस्तित्वमात्रथी, मारो मत खोटो होय तेवी मारी खातरी थती नथी. आनुं कारण ए छे के आ संवत्नो पत्तो-उल्लेख ११ मी सदीना पहेलां, बुद्धनिर्वाण पछीना १५०० वर्षना अरसामां, थएलो मळतो नथी. अने प्रो.गायगर ज्यारे अशोकनो अभिषेक इ. स. पूर्व २६४ नक्की करे छे त्यारे तेओ शिलालेखना प्रमाण तरफ उपेक्षा करता होय तेम जणाय छे; कारण तेमां जणावेलुं छे के अभिषके पछीनुं १३ मुं वर्ष इ. स. पूर्व २६० अने ५५८ नी वचमां पडे छे. अने तेज काळना शिलालेखो द्वारा पा प्रमाणे पुरावो मळतो होवाथी, सिलोनना ऐतिहासिक ग्रंथोर्नु प्रमाण, स्वाभाविक रीते ज निरुपयोगी निवडे छे. आ निबंधनो उपसंहार करता पहेला, हुं मारा निबंधना हस्तलिखित कागळोने अतिशय मायालुपणे वांची जई अंग्रेजी भाषाना शुद्ध प्रयोगने लगती मारी केटलीक भूलो सुधारी आपनार डॉ. एफ्. डबल्यु. थॉमसना तरफ मारी अंतःकरणनी उपकारवृत्ति प्रकट करूं छु. Aho! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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