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________________ अंक २] श्री महावीरनो समय-निर्णय [१२३ - मेरुतुंगे नोंधेली परंपरानुसार चन्द्रगुप्तना राज्याधिरोहणन वर्ष इ.स. पूर्वे ३१२ मुं आवे छे. आ मिति घणी ज गुंचवाडो उत्पन्न करनारी छे. मौर्यसंवत् इ. स. पूर्वे ३१२ मा वर्षे शरु थयो हतो ए बाबत, सेल्युसिडनना संवत्नी साथे ते संवत् आभिन्न छ एम बतधवा खातर मानवू मने उचित लागतुं नथी. जो के आपणे सारी पेठे जाणीए छीए के चंद्रगुप्ते सेल्युकसने हिदुस्तानमाथी देशवटो आप्यो हतो तेम ज तेनी पासेथी तेनी सत्ता हठेळना बेक्ट्रीआना मुलकनो एक भाग खुचावी लीधो हतो; परंतु ए वात समजमां नथी आवती के चन्द्रगुप्ते, तेना पराजित शत्रुना नाम उपरथी, पोताना संघत्नो आंरभ कों होय. आ उपरांत एम पण मनाय छे के चंद्रगुप्ते नवो युग स्थाप्यो न होतो. (सरखावो, उपर पृ. ११५.) परंतु चंद्रगुप्त वार पछी १५५ वर्षे राज्याभिाषिक्त थयो हतो एम कहेवातुं होवाथी एम लागे छे के आ संवत्नो आरंभ पण कोई एक घणीज महत्वनी जैन बाबत साथे संबंध धरावतो हशे. अने हुं धाएं छु ते प्रमाणे छे पण तेम ज. चंद्रगुप्तनो समय जैनधर्ममाटे खरेखर एक अतिशय पडिा अने दुःखनो समय हतो. आ समयमां जैनधर्म राज्याश्रयथी वंचित थयो हतो. जो के जैनो चंद्रगुप्तने जैनधर्मानुयायी तरीके अने पाछली वयमां तो खास तेने एक जैन साधु तरीके पण बतावे छे; परंतु, चाण क्यनी राजनीति आवा पाखंडी मतानी 1 अनुकूळ नही पण प्रकट प्रतिकूल हती. अने वास्तविक रीते जोतां जैनोनो पूर्वहिंदुस्थान साथेनो संबंध जे अशोक पछी सर्वथा तूटी गयो हतो( आमां खारवेलर्नु राज्य अपवाद रूप छे परंतु तेनो समय हजी सुधी अनिश्चित छ.) ते त्यारपहलां पण केटलेक अंशे शिथिल थयो होय एम लागे छे. परंतु आ उपरांत चंद्रगुप्तना राज्यकालमा १२ वर्षनो एक दारुण दुष्काळ पडयो हतो, के जे दुष्काळ जैनधर्ममां भेद उभो करवामां निमित्त बन्यो हतो एम जणववामां आवे छे. ए ज समयमां श्वेतांबर अने दिगंबर नामना बे संप्रदाओनी शरुआत थई हती. जे कालमां चंद्रगप्त राजा थयो हतो ते वखते-जैन इतिहासमां घणा ज थोडा कालांशोमां जोवामां आवे छे तेम-एक ज समये जैनधर्म संभूतिविजय अने भद्रबाहु नामना बे युगप्रधानोनी सत्ता हेठळ प्रवर्ततो हतो. परंतु संभूतिविजये, चंद्रगुप्त जे वर्षमा राज्याभिषिक्त थयो तेनी पछीना ज वर्षमा एटले वीर पछी १५६ मा वर्षमां काल को. आ वर्ष ते कदाच हेमचंद्र, परिशिष्ट पर्व, ८,३३९ मांजे कहेछे के १५५{ वर्ष पूर्ण थ हतुं (गत), तेज वर्ष छ; अने ते उपरथी मारी एवी मान्यता छ के आ बनाबने अनुकूल आववा माटे ज हेमचंद्रे चंद्रगुप्तना राज्यनी शरुआत, इ.स. पूर्वे ३१२(अथवा ३११) नी बराबर मळता एवा तेज वर्षमा, त्यार पहेलांना दशमा अगर अगीआरमा वर्षे न मूकतां, मूकी छे.संभू तिविजयनो मरणकाल जैन इतिहासना एक कालभागनो अंतसूचक छे. ए बाबत खरी छे के तेमना पछी १५ वर्षे गुजरी गया हता ते भद्रबाहु, तथा तेमना उत्तराधिकारी स्थूलभद्र ए 1. सरखावो:-इ. थामस. गुप्तवंशनी नोंधो ( Records of the Gupta dynasty )पा १७; जेकोबी, कल्पसूत्र, पा० ८; वि. ए. स्मीथ, हिंदुस्थाननो प्राचीन इतिहास पा० ३३ टी.; ४० टी०, १८७ टी.; फ्लाट, ज. रॉ० ए. सो० १९१०, पा. ८२५ टी० २. अर्थशास्त्र, ज्यां सुधा ते अन्यकृत सिद्ध थाय नही त्यां सुधी, हु ते चाणक्यकृत ज मानुं छु, ए अर्थशास्त्रमा सांप्रदायिक अथवा जैन असरनो जराए उल्लेख जणातो नथी. सिवाय के, पृ. ५५वीगेरे उपरनो उल्लेख के जेमां बीजा बीजा देवोनी साथे कदाचित् जैन सम्मत अपराजित, जयन्त अने वेजयन्तनो पण निर्देश छे. पण मारा मते एमां काई विषेशता नथी. पृ. १९९ इत्यादि उपरनो तर्थिकरना उल्लेख जैनधर्म प्रवर्तकने सूचवे; पण आपणे याद राखर्च जाईए के पाली पिटकमां 'अन्य तीर्थिक' ए शब्द अनेक संप्रदायना भिक्षओ माटे वापराएलो छे. Aho! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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