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________________ अंक २] श्री महावीरनो समय - निर्णय [ ११५ संबंध धरावतां नहि परंतु धर्मपरिवर्तनने उद्देशीने लखेलां होय, तो आ बनाव, बुद्धनिवाणनी मिति इ. स. पूर्वे ४७७ नी स्वीकारतां इ. स. पूर्वे २५९ मां थयो होय, अने छेवटनुं धर्मपरिवर्तन आशरे ऋण वर्षो पछी एटले इ. स. पूर्वे २५६ थयुं हशे. परंतु आ मितिमां केटलांक वर्षो वधारे गणाएलां लागे के; कारण के कलिंगनी जीत मोडामां मोडी इ.स. पूर्वे २६२ मां परिसमाप्त थई होवी जोईए. तेम छतां आपणे नीचेनी वे बाबतो ध्यानमा राखवी जोईए, कारण के ते द्वारा घणु करीने बधी मितिओ संपूर्ण रीते संगत थाय तेम हे. (१) उपर जणाव्या प्रमाणे बुद्धघोष अने अहेवालो बच्चेनो विरोध केटलोक अगत्यनो छे, अने (२) महावंशमां ज्यारे बिंदुसारे २८ वर्ष राज्य कर्यानुं जणावेलु छे त्यारे ब्राह्मणग्रंथो के जे ए बाबतमां वधारे सत्य होई शके तेमां २५ वर्ष अर्थात् त्रण वर्ष ओछां दर्शावेलां छे. आ सूक्ष्म भेदोने भेगा करवाथी एवं अनुमान नीकळे छे के, उपरोक्त २१८ वस्तुतः अतिशयोक्ति भरेलां छे, अने तेथी इ. स. पूर्वे ४७७ वर्षे नक्की करेली बुद्धनिर्वाणनी मितिमां आ अतिशयोक्ति कांई वांधा करती होय तेम मने लागतुं नथी, एटलुं ज नहि पण तेने वधारे दृढ करे छे. महावंशनां केलांक कथनो जो के अविश्वसनीय छे खरा, छतां पण दीपवंशमां आपेलां, राजाओ तथा तेमना राज्यों संबंधी वर्णनो, एवां गोटाळा भरेलां जोवामां आवे छे के तेने मुकाबले महावंशनां वर्णनो घणांज स्पष्ट लागे छे. आ गुंचवाडावाळां वर्णनामां पण हुं कांईक जे मार्ग शोधी शक्यो धुं तेमां मने मगधना रोजाओनां संबंधमां बे मुख्य परंपराओ जणाई आवे छे. आमांनी पहेली तो घणी ज गुंचवणी भरेली छे अने बीजी सिलोनना राजाओनी कारकीर्दीनी गणत्रीओ साथै विचित्र रीते भेळसेळ थपली छे. शरुआतमां कहेवुं जोईए के दीपवंशमां अने महावंशमां जे बे मुख्य बाबतो स्पष्ट जोवामां आवे छे तेमांनी एक तो द्वितीय संघसम्मेलन संबंधे छे के जे सम्मेलन बुद्ध पछी १०० वर्षे थयुं हतुं. आ वखते शिशुनागना 77 पुत्र अशोकना राज्यनां १५ वर्ष अने १० दिवसो व्यतीत थया हता. अने बीजी बाबत ए छे के, अशोक बुद्ध पछी २१८ वर्षे अभिषिक्त थयो हतो. 78 बीजी जे हकीकतो दीपवंशमां ३,५६ थी मांडीने ६, १, ज्यां अशोकना अमलनी शरुआत थाय छे त्यां, सुधीमां जणावेली छे, ते ए छे के, बिंबिसारे ५२ वर्ष राज्य कर्यु हतुं. अजातशत्रुए ८ वर्ष बुद्धना जीवतां अने २४ वर्ष निर्वाण छः सात अंगोना संग्रहना ६४ मा अध्ययनने ( अथवा अन्य विभागने ते उत्पन्न करे छे, बहार आववा प्रेरणा करे छे (अर्थात् ताजुं करे छे. ) आनो अर्थ शुं? मारा जाणवा प्रमाणे, पहेलां सात अंगों कदापि एक भाव धारण करतां होय तेम शास्त्रमां मानवामां आव्युं नथी. अने तेम बराबर रीते करी शके पण नहि. कारण के उवासगदसाओ, रचनाशैलीमा छठ्ठा अंगनी अपेक्षाए आठमा अने नवमा अंगनी साथे वधारे समान छे. अने आपणे कदाचित मानी लईए के धर्मशास्त्र - आगम-जे रूपमा अत्यार विद्यमान छे ते ज रूपमां ते वखते हतां-जो के आ वात तद्दन आवश्वसपात्र छे तो ६४ मुं अध्ययन ते भगवतीना ५ मां ' सय' साथे बंध बेसे जेने खारवेले फरीथी ताजा कर्यो होय. परंतु आम मानवुं ते मूर्खता भरेलुं छे. वळी ९-११ अंगोमा कुल ७५ अध्ययनो नथी परंतु ३३+१०+२० एटले ६३ ज छे. परंतु आ विषय हुं अन्य स्थळे चचींश. चंद्रगुप्ते कोई पण मौर्ययुग स्थाप्यो न होतो ते वात तो खुल्ली छे कारण के अशोक तेनेा उपयोग करतो नथी. अने ए उपरांत प्लाइनी ( Pliny ) ६ : १७ (२१) मां जे मेगेस्थिनीझनुं कथन आपेलुं छे के 'बेकसपिता ( Father Bacchus ) थी मांडीने ते अलेकझान्डर सुधी एटले ६४५१ वर्षोमां हिंदुओ १५३ राजाओनी गणत्री करे छे, ते मने तो कलियुग अगर अन्य कोई लौकिक युगनी गणतनी कढंगी नोंध होय तेम लागे छे; सरखावो, वळी Arrian, Ind. ch. 8 77. दीपवंश. ४, ४४; ५, २५. 78. दीपवंश. ६, १. Aho ! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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