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________________ अंक २] श्री महावीरनो समय-निर्णय [१०३ ___ आ फकरा उपर घणो भार मुकवामां आव्यो छे, कारण के घणा विद्वानोए आ वातने दी०नि० ३, पृ० ११७ अने २०९; म०नि० २, पृ० २४३ वाळी हकीकत साथे जोडीने 34 को छे के नातपुत्त ज्यारे पावामां मरी गया त्यारे बुद्ध शाक्योनी भूमि उपरना सामगाममा हता. आ उपरथी एम अनुमान करवामां आव्युं छे के उपालीनी मुलाकात पछी थोडा ज वखतमां महावीरनुं अवसान थयु. 35 अहीं, महावीरना अवसान विषना बौद्ध उल्लेखना विषयमां हुँ नहि बोलुं; आगळ उपर तेनी चर्चा करीश; परंतु उपालिनी आ वार्ता तथा तेना प्रथम गुरुना अवसान संबंधी, बे बावतो उपर हु भार मूकवा मागुंछु. प्रथम बाबत ए छे केहालमां मनातुं महावीरना निर्वाणवें स्थान पावापुरी पटणा प्रांतना विहार भागना गिरियक गामथी लगभग त्रण माइल दूर आवेलु छे; 36 ज्यारे दो० नि० ३, पृ० ११७ विगेरे उपरथी ए स्पष्ट थाय छे के बौद्धो पावा ते स्थळने मानता हता के ज्यां कुसिनाराथी आवतां बुद्ध चुंदना घरमा रह्या हता; अने ते शाक्योना प्रदेशमां आवेलुं कहेवाय छे. राजगृहमा उपलिसाथे विखवाद थयां पछी जो महावीर थोडा ज वखतमां अवसान पामवाना होत तो तेवा आजारीने माटे आ स्थान घणुं दूर कहेवायतथा कल्पसू० १२२-३ प्रमाणे महावीरे पोतानुं छेल्लु चोमासु पावामां 'राजा हस्तिपालनी लेखकोनी सभा'मां गाळयुं हतुं. तेथी उपालिने लीधे तेमनु मरण थयु एम जो मानीए तो पण उपालिनी मुलाकात पछी तेओ लगभग अर्धा वर्ष सुधी जीव्या हशे. बीजी बाबत ए छे के चु० व० ५,४,३ मां, ज्यारे देवदत्तने पण महावीरना जे कारण बन्यु त्यारे तेना मुखमांथी पण उष्ण लोही नीकळयुं एम एक ज वात कहेली छे. जो के केटलीक पाछळनी विगतो उपरथी स्पेन्स हार्डी अने बीगन्डेट 37 एम माने छे के उपालिना विरोधना परिणामे तेमनुं मरण थयुं, परंतु जूना लेखोमां कोई पण स्थळे ए प्रमाणे कहेलुं नथी. पण आ उपरथी हुँ ए निर्णय उपर आq छु के महावीरना मरणने उपालिना विरोध साथे कार्यकारणनो अगर अन्य कोई पण प्रकारनो संबंध नथी. ____ अभयकुमारसुत्त ( म० नि० १, ३९.२) मां कहेलुं छे के राजगृहमां निगंठनाथपुत्ते अभयने कह्यु के, तमे बुद्ध पास जई, प्रिय शद्बो बोलवा ए ठीक के नहि, ते विषे प्रश्न पूछो. आ प्रमाणे बुध्दने पकडवाने जाळ पाथरवामां आवी; कारण के जोते 'ना' कहे तो पोते खोटो पडे, अने 'हा' कहे तो देवदत्तने तेणे शा माटे कठोर शद्बोथी धिकार्यो हतो एम अभय पूछे. हुँ कबुल करुं छु के आ फकराने अगत्यता आपवानी जरुर नथी, कारण के पाली आगममा 38 34. सरखावोः चामर्स.J. R. A.S. 1895, p. 665. 35. उपालिना विरोध पछी नातपुत्त थोडा ज वखते मरी गया ए वात स्पेन्स हार्डीए, मॅन्युअल ऑफ बुद्धिज्म् पा. २८. मां कहेली छे. पण सरखावाः-जेकोबी. कल्पसू. पा.६ 36. सरखावोः इम्पीरीयल गॅझेटीअर आफ इंडिआ. पु. २०, पा. ३८१ 37. सरखावोः से बु०३०,पु.१३,पृ.२५९.आज बाबत सिद्ध करनारो बीजो दाखलो सारिपुत्त अने मोगल्लानना गुरु संजयना इतिहासमां आवे छे. ज्यारे तेना शिष्योए तेनो त्याग को त्यारे तेणे लोही ओक्युं हतुं, एम कहेलं छ. पण तेना मरण विषे कोई कहेलं नथी, जे ते वखते थयुं नहि होय, कारण के मारा धारवा प्रमाणे ते ज बेलठ्ठीपुन्त नामे पाखंडी हतो. पण बील अने बीगन्डेट कहे छे के ते त्यारपछी तरत ज मरी गयो, जे बाबत स्पेन्स हार्डीना कथनथी विरुद्ध छे.Manual p. 202. सरखावोः से० बु० इ०, पु० १३, पृ० १४९. 38.संयत्त०नि० ४,३२२ मां जणाववामां आव्यु छे के एक दारुण दुष्काळना समये बुद्ध अने नातपुत्त बन्ने एक साथे नालंदामा रह्या हता. ते दर्मिआन नातपुत्त पोताना धर्मानुयायी एक गृहस्थ जेनुं नाम असिबन्धकपुत्त (सरखावो उपरोक्त पुस्तक पृ. ३१७) हतुं अने ते गामनो ग्रामणी हतो तेने बुद्धनी पासे जई एक प्रश्न पूछवा कां के 'आ (दुकाळना) वखते तमारा बधा श्रमणोने अहीं राखी गरीब लोकोना खोराकने वाहा करावी देवो ए शं तमन योग्य लागे छे? " Aho! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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