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________________ अंक २] श्री महावीरनो समय-निर्णय बलमित्त-भाणुमित्ता सष्टी वरिसाणि चत्त नहवहने। तह गद्दभिल्ल-रज्जं तेरस वरिसा सगस्स चउ ॥३॥ भावार्थ:--जे रात्रे अर्हत् तीर्थकर महावीरे निर्वाण प्राप्त कर्यु ते ज रात्रे अवन्तीपति पालकनो अभिषेक करवामां आव्यो. (१) पालक राजाए ६० वर्ष राज्य कर्यु, अने नंदोए १५५ वर्ष राज्य कर्युः मौर्योए १०८ वर्ष, तथा पूसमित्ते (पुष्पमित्रे) ३० वर्ष राज्य कर्यु. (२) बलमित्र अने भानुमित्रे ६० (वर्ष) राज्य कर्यु, अने नभोवाहने ४० वर्ष. ते ज प्रमाणे गर्दभिल्लनी सत्ता १३ वर्ष रही, तथा शकनु राज्य चार वर्ष रहयु. 5 (३). ___आ पण गाथाओ घणी टीकाओ अने कालगणना-विचार-विषयक ग्रंथोमा उध्वृत करेली छे (ब्युल्हर). दाखला तरीके, तपागच्छनी (महावीरथी विजयरत्नना पट्टारोहण सुधीनी एटले वि. सं. १७३२-इ. स. १६८५-८६ सुधीनी) 6 पट्टावली. एमां विक्रम अने शक वञ्चना समयपूरक पण वे श्लोक आप्या छे, परंतु अहीं ते संबंधे आपणे विचार करवानो नथी. त्रीजा श्लोकमां नहवहणने बदले नहवाण पाठ आप्यो छे ते एक तफावतनी बाबत छे; पण अहीं ते पण आपणने अनुपयुक्त छे कारण के, ते श्लोको बहु ज गुंचवाडा भरेला तथा अश्रद्धेय छे; एटलं ज नहि पण, ते ग्रंथकारे नहवान नामना महान सुबानो समय विक्रमनी पहेलां मूक्यो छे के जे तद्दन असंभवित छे. उपर कह्या प्रमाणे, आ श्लोकोमा महावीरना निर्वाणथी ते प्रख्यात राजा विक्रमादित्यना समय सुधीमां थएला राजवंशोनी टुंक हकीकत आवे छे. पण ए गाथाओ मूळ कया पंथनी छे ते तद्दन अज्ञात छे. एटलुज मात्र नक्की छे के आ श्लोको मेरुतुंगना अगर तेना कोई समकालीनना रचेला नथी, कारण के ते समय पहेलां घणा वखतथी जैन ग्रंथकारोए प्राकृत भाषामां लखवानुं छोडी दीधुं हतुं. 7 अलबत्त, जैनोना आगमोमां तो आ गाथाओ नथी ज; अने तेथी देवर्द्धिगणिनी सिद्धांत ग्रंथोनी छेल्ली आवृत्ति पछी ( महावीर पछी ९८० अगर ९९३ मां, एटले के इ. स. पूर्वे ५२७ थी गणतां इ. स. ४५३ अगर ४६६) एरचायानो घणो संभव छे. एटले ए श्लोको सिद्धांतनी छेल्ली आवृत्ति वखते अगर तरत पछी जे टीकाओ रचाई ते जुनी टीकाओमांना हशे. आ ग्रंथनां हस्तलिखित पुस्तको प्रमाणे नहवहणे ए प्रथमा विभक्ति सप्रमाण होय तो ए अमुक समयनुं सूचक बनी शके-जा के आ विषयमां हुं कांई पण स्पष्ट अभिप्राय आपी शकुं तेम नथी-कारण के एटलुं तो सुनिश्चित ज छे के पाछळथी लखायली टीकाओमां, दाखला तरीके, देवेन्द्रनी उत्तराध्ययन उपरनी टीकामां (इ. स. १०७३) ज्यां टीकाना समय करतां प्राकृत भाषा घणी जुनी छे, त्यां एकारान्त प्रथमा जोवामां आवती नथी. 8 आ अने 5. आ अनुवाद बुल्हरनो करेलो छे. 6. क्वेटे प्रसिद्ध करेली, एन्डि• एन्टी० पु. ११, पा. २५१. 7. स्टडी इटालीअनी, पु. १, पा. १० मा पुल्लेना कहेवा प्रमाणे जैन ग्रंथकारोए लग भग इ. स. ८५० ( शीलांकना समय) थी संस्कृत भाषामां लखवा मांडयः तेम छतां आ कांई निश्चित मीति नथी. 8.आ ग्रंथने में दाखला तरीके लीधो छ तेनुं कारण ए के तेनी प्राकृत भाषा प्रो.जेकोबीना Ausgewahlte Erzahlungen नामना पुस्तकथी सुज्ञात थाय छ, आ विषयनी चर्चा स्पष्ट करवा माटे मारे कहेवू जोइए के ए ग्रंथमाना ज जे भागमां एकारान्त प्रथमा आधे छ (पा. २८, पं. १७-२४, पा. ३२, पं. ३५,पा.३३ पं. २८, अने पा.३४, पं. ११-२०) ते ते भागोनी भाषा तद्दन जुदीज छ,अने कदाच कोइ एक अंगनी छे, जेनुं नाम हं हाल स्पष्ट रीते कही शकु तेम नथी. Aho! Shrutgyanam
SR No.009879
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1923
Total Pages282
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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