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________________ अ० ३ ] वर्षे श्री सिद्धि क्षेत्रि सा. जावडे तेरमो उद्धार कीधो । श्री मुक्ति हुआ पछी श्री वज्रसेन सूरी चिरं राज्य वर्ष छ सय अनि नव गये हूंते, पुनः वीक्रमथी १३९वर्षि दक्षिण दिशि कर्णाटक देशी दिगंबर नामि सर्व विसंवादी सातमें बोलनी परूपणा थापि आठमो ए निन्हव हूओ । पुनः श्री वीरनर्वाण पछी छ सतने वीसें वर्षे श्री ( ३१ - १ ) गिरिनारे सा जावडे उद्धार कीधो । १५ तत्पट्टे चंद्र सूरि तेहना सल्लहड गोत्र : श्री वज्रसेने चंद्र शाषानो उदय जांणी च्यार गुरु भ्रातामध्ये श्री चंद्रसूरीनिं पाट थापना harat | अन्य तृण गुरु भाई शालाइ रह्या घणा गौत्र प्रतिबोध्या । श्रीचंद्र गछ एवं श्रीजु नाम कहिवाणुं । वीर वंशावलि. १७ नहि । गुरे श्रावकने तेडी कलां ए तपासने रुडि परि वि पंग धोइ जीमाडज्यो । गृहस्थे तिमज कीधुं । अमारो हर्ष छइ दम कहीं बलात्कारि देवसम्म तापसे ना २ कहितां वि पग यणि प्राकमि करी धोया । भोजन देव बोलवता लोकवृंद साथ हूया । पादलेप औषधी धोया थकी नदीमा अर्द्ध विचालई वूडवा लागो । तिवा (३२-१) रे लोके कपट कही निच्छीओ । मुष झाषो हूओ । तेहवई तेहनी प्रतिबोचवाने श्री आर्य समिति सुरी तिहां नदी तर्टि आवी सकल लोक वृंद देषतां, चिपटी देई गुरु कहें है वैन्ने । अम्हे पेलई पार जावा बांछु छु । तेतले नदीना बिहूं कुल एका मिल्या | सकल लोक मनि विस्मय हुआ । तिवारि श्री आर्य समिति सूरी मनुष्य वृंद सहित तापस स्थानि कनई जाइन धम्मोपदेश देने ते पांचसि तापस प्रतिबोधी दीक्षा दीची । ते सबला श्री आर्य समिती सुरीना शिष्य हुआ । तेहनी संघाते तेडी श्री गुरु संघ सहित शालाई आव्या । श्री जिनशासनोनति हुई । तिहां थी ब्रहमाण गछ हूओ | श्रीवीर नीर्वाण हुआ पछी छसई अनिं ईग्यार वर्ष गयई हूति ते तापस साधु की श्री ब्रहम दीपीका शाषा केहेवाणी । पुनः विक० सं० ३७७ वर्षे निर्वृति कुलि राज चैत्र गच्छीय आ० श्री धनेश्वर सूरी | सवालाख ग्रंथ श्री सिद्धाचल महातीर्थनो महिमा हूतो । तिवारे वल्लभी नगरें श्री शिलादित्य राजाई अल्पायु अनि विकल्प वणा जांणि ते पूर्वग्रंथ सवालक्ष ढुंतो ते माहि थकी सार २ संबंध दश हजार नई संख्याई उद्धरीनें श्री सिद्धाचल महात्म कीधो । हविं ब्रह्म द्वीपीका शाषानी उत्पति कहई हई | आहिर देशी अचलपुर नगर परिसरें कृष्णा अनि बन्ना एहवे नामई बिहुं नदीनी वीचली ब्रह्म नामी द्वीप हैं । तिहां व्यारसे अने निवाणुं तापसनि परिवारि देवशम्मी नांमिं कुरुपति रहे हे । तें मुख्य देवशर्मा आ ( ३१-२ ) पण महिमा वधारा सर्व तापसने बिहु पगने विधिवनने विष रहें । इम जावजीव अाथी निःस्पृहपणई श्री वैराग्य faat aai किवार वाडीने विषई रहई, किंवा (३२-२) रई यक्षन देहेरे वास रहें । किवार सकल सूरी छत्रीस गुणे संपूर्ण देवी लोके वनवासी एवं बिरुद दी | तिहां की चोयु नाम वनवासी गच्छ कहिवाणुं । उषधी लेप करी संक्रांतिना पर्वना पारणानि दिन बना मदीना जल उपरी हिंडी अचलपुरे आये । ते चमत्कार देषी मध्यात्वी गृहस्थ भोजन देव प्रसंसा करें | तपस्वी महा तप सक्ति चमत्कारिं छे । जैननी नींदा करी श्राद्धने कहें तुम्हारा जैन मांहि कोई एहवा प्रभावक नथि । एहवे तिहां विहार करता श्री वज्र स्वामीना मांमा श्री आर्यसमिति सरी आव्या । तिवारें जैन गृहस्थे तापसनो सर्व संबंध को | ते गृहस्थ वचन सांभली गुरु विचारी जे कोइक ओषधीना जोगथी कपट हई पि तपशक्ति १२० ३ एवं पाट पन्नर सुधी श्री थिरावली सुत्रि करी थविर कह्या हवे तेहना शिष्य ते आचार्य कहे छई । १६ तत्पट्टे श्री समंतभद्र सूरि । श्री वीरमुक्ति हूया पछी आठसई नई बीयासी वर्षे चैत्यवासी हुआ । विक्र. सं. ४२८ वर्षे श्री अनंगसेन तूंअर थकी दील्ली नगरीनी थापना हू | १७ पट्टे श्री वृद्धदेव सूरी । श्री बी. सं. ५९ वर्षे श्री सार नगरे ओईमा Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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