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________________ जैन साहित्य संशोधक-परिशिष्ट. [खंड, कन्या परणावी । तेहस्युं संसारिक सुष भोगवतां एक विलासो नेत्रजो ज्ञेयो विभ्रमो भ्रूसमुद्भवः ।। . पुत्री हुइ । ते सुधर्मा चार वेद सांगोपांगनी पाठी छ । तेहूनें एहवी २ काम चेष्टा करी अंग देषा. | पण जंबु पासे पांचसय विद्यार्थि वाडवसुत विद्याभ्यास (२-१) करे ते स्त्री सांहमी दृष्टी जोडें नही, एहवे घणा मनुष्यने मुखि छ । पिण ते सुधर्मना चितने विर्षे एक महा संदेह छे । ते जंबुनें घरे नवाणु कोडी सूवर्ण द्रव्य आव्यो सांभली किस्यो ? जे जेहवो ते तेवो । ते संदेह श्रीवीरवचनें प्रभवो नामें चोर पालथी च्यारसे नवाणु चोर मनुष्य लेइ निःसंदेह हुओ। तिवारें पांचसय छात्र युक्त वर्ष पंचास रात्रिं जंबू घेर द्रव्य लेवा (३-१) पइठो | धरने गृहस्थपणु भोगवी, संसयछेदक श्रीवीरहस्त दीक्षा लीधी। छूटक चोक माहिं द्रव्यनो ढीग कीधो देषी अवस्वापनी वर्ष बहितालीस शिष्यपणे श्रीवीरनो विनय किधो। विद्याने प्रक्रमे सकल घरना मनुध्य प्रतें निंद्रा दीधी।' एतलो (१) वर्ष वाणु छद्मस्थापद भोगवी । पुनः वर्ष पछी तालोद्घाटनी विद्याइं ताला उधाडी गृहाधीसनी परें आठ केवली पद भोगवी । एवं सर्व आयु वर्ष सोनो अबीह थका द्रव्यनी गांठडी बांधी माथे मुकी । च्यारसें संपूर्ण । मास एक चउविहार अणसण | पांचमें आरें। नवाणु चोर सहर्षित चित्तथका स्वबरे जावा उद्यमि हुआ। पश्चिमदिशि । श्रीवीरने मुक्ति हुआ पछी वीसे वर्षे एतले जंबुना सीलधर्म महिमायकी शासन देव्याइं थांभाश्रीगिरनारपर्वतोपरि श्रीसुधर्मा नामें श्रीवीरना पहेला पटो- नि परे निश्चल थंभ्या । अने जंबु तद्भव मोक्षगांमि छे ते घरने मुक्ति हुइ। मादे अवस्वापनि नीद्रा न आवी । एतले प्रभवो मेढीयें श्रीवीरशानोत्पत्तेःचउद वर्षे जमाली प्रथम निन्हव सोले चढ्यो । देखें तो रंगसालाये जंबू नवोढा स्त्रियोने उपदेश वर्षे तिष्यगुप्त द्वितीय निह्नव । प्रथम नाम निग्रंथी। श्रीवीरनें रूप प्रतिबोध कही दृष्टांते समजावि छ । ते जंबू प्रथमपाटें सुधर्मा स्वामी जाणवा ॥ १ ॥ वचन सांभली स्त्री पण पाछो पडुत्तररूप दृष्टांत करे छे । २ तत्पट्टे श्रीजंबूस्वामी । पिण संसार विरक्त थका, द्रव्यना ढिग चोर लिये छे ते हवे ते जंबू कुमारनी उत्पत्ति कहें छ । पूर्वदिशि सांहमु जोता नथी । ए मोटा अचरिज देषी लघुकरमी मगधदेश बछ भूमियें राजगृह नगरें काश्यपगोत्री श्रेष्ठ जीव प्रभवो जंबू कथक दृष्टांत सांभली मनसु बिचारें छे रुषभदत्त । तेहनी स्त्री धारणिनामें । तेहनी कूर्षे पांचमा जे धन्य ए जंबू कुमारने । नवाणु कोडि कनक अने तूरत ब्रह्मदेवलोकथी आयु संपूर्ण [थयें] देवतानो जीव( २--२) परणी नवोढा नव कन्या थकी वेगलो छ। विग मुजने चवी आवी बेटापणे उपनो । तिवारे धारणीई मध्यरात्रे जे हूं राजपूत्र कहवाउं छ । भी ( ३-२ ) लसंग रही सूतां थको सूहणे सफलंत जंबूनो झाड दीठो । तेहने घणा जीवनें दृढबंधने तथा दृढ प्रहार करी त्रासिं महादुष अहिनाणे जंबू कुमार नाम दीधू । अनुक्रमें वर्ष सोलनो आपू छु । तो मुझने कुण गति हुस्यें । इस्युं विचारी हुओ । एहवे अवसरे श्रीसुधर्मा केवली विचरता आव्या। प्रतिबोधपांमी च्यारसेंनवाणु परिकरसहित प्रभवो आवी तेहने मुषे उपदेस सांभली लघुकमी जीव जंबू कुमारे जंबूने नम्यो । एतले शासनदेव्याइं ते सकलने व्रत लेचोथु वर्त आदरयुं । सुधर्मा केवलीये विहार कीधो। वानो आसय जाणी बंधन थकी मुक्या | जंबूये पण नव भोग समर्थ जाणी वार २ मातापिता संसारनी वार्ता स्त्रीओने प्रतिबोधी प्रभाते स्वमातापिता अने ८ प्रियानां कहें । तोहि पिण जंबु पाणिग्रहण न वांछे। मातापि- मातापिता-एवं पांचशे सत्यावीस मनुष्य युक्त | पुनः साये हर्ष पूरणमाटे घणा आग्रहथी उत्तम व्यवहारिया- नवाणु कोडी सूवर्ण उपरि मूर्छा तजी नीर्लोभिता यें....... नि बेटी आठस्यूं परणान्यो । पिण तेहस्यू स्नेह दृष्टी जोडे पाणिग्रहणने अवसरे तिलके दीधा कोठी सत्यावीस घरनही । संसारीकनां मृदुवचन बोले नही । यतः नो मूलगो द्रव्य-एवं नवाणु कोडि संख्यायें जाणवो । ते ... हावो मुखाविकारः स्यात् भावो चित्तसमुद्भवः । तजी वर्षसोल गृहस्थपणे रही। श्रीसुधर्मा हस्ते दीष्य Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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