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________________ २१४ जैन साहित्य संशोधक [खं १ (२३) सोभागी करणनि परी त्यागी मुगतिना रागी श्रीपत्सिाह प्रबोधक अबोह जी(२४) व प्रतिबोह कलिकाल गोत मा अवतार तपगछ सागार हार तपतेज दीवा(२५) कर गछाधीपति गछाधीराज सरबउपमाजोगः भटारिक पुरिदर श्री श्री श्री श्री श्री(२६) श्री श्री श्री. श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री विजयसेन सुरसूरिस्वर स ) परिवार चरण कमलानं श्री आगराकोटानु सदा आदेसकारी चरणसेवक दासन(२८) दास पाइरज समान सदासेवकः साः विमलदास साः बंदीदास सा: लालचंद दुरगदा(२९) सः संः चंदुभोपती साः ननजी: सा: चंद्रसेनः संः प्रतापसीः सः नाथु भीषारीदास साः पुनुमना (३०)साः समीदास दरगहमल: साः पेमन साः टोडरः संः वीरदास साः कवडू ननु संः धरमदास गटका: संः नेतसी: साः खडाः साः भोजु साः सा)गर संः कवरजी वरचमानः सा: वैरा राई सीध साः कवरा धरमसी सा: मोकल साः मेघा ) साः कटारू पिरथीमल साः बोहीध साः गोरा साः वधा कुहाड संः देवकरण साः पदमसी: सा: मा(३३) नीकचंद सा तीलोकसी जैतसीः सः धरमदासः साः ताराचंद साः पतापीथाका साः रासाः साः घेत(३४) सी साः नेतसी सा मुला: साः डूंगरः सः रीघ भदास सा चाउ सा घेभन साः लीषमीदास सः भीर __ पाल सा: मीमा साः भोजुराजु (३५) साः भारूतारणः सा: पतापसारि: साः तारूपसारी सा: देवजीः सोनी: रीषभदास सोनी विमलदासः (३६) साः अमीचंद साः देवकरण साः देवजी भीमजी साः जीवा संः उदा कमा: संः सीधु सं सबल (३७) संः समीदास संः लीलापती सं: कलु संः वीरजी: सं: कपुरा सादुल सा: कल्याण सुगंधीः दरगह सुगंधीः ( ३८) साः कचरा मुहणैत सा: पदा मुफ्त साः जेसीघ मुहणेत साः जादू साः ईसर साः भाउ साः गोवल (३९) साः सोमसीः साः पोमझी साः वरधमान साः राउ साः धनराज संः नीहालु साः रूडाः साः भो वाल सोनी (४०) सकतन साः रतना साः संसारू साः वाघु साः जावड साः डगर वैद साः गग्ग साः भू डूगर साः सु( ४१ ) रताणाः साः जेकरण आदेसकारी दवस वंदणाः सीकाह सा कावः राघवनी अवधार जोः समस(४२) त संपनी द्वादस वदणा अवधारजोः ईह श्री पुजाजीनै प्रसाद कुसल पेम छै पुजीजीना(४३) कुसल मना सदा समाचार लीषवाजी त सेवकनै परम संतोष उपजैः अपर ईह श्री(४४) पजुसण प्रब नीराबाद पणै हुआ छै अमारी दीन १२ पजुसणनी विशेष सावदेसः पुरबदेसः ( ४५ ) तथा ढीलमंडलः मेवातमंडल रीणथंभैरगढ देसी: बीजा ही घणै देसी अमारी वरती छै तेः संतोष मानजो ( ४६ ) श्री सतरभेद पुजा १५ श्री जहगीर पातीसाह तषत बेठ पुढे ये अपुरब करणी हुई छै भ(४७) गवनजीनै प्रसाद श्रीतपागच्छनी उनित वीसेष हुई छै श्रीः पातिसाहजी फरमान २ करी द-- (४८) नाः ते श्री पजुसण आव श्रीजीनुः रमदासजी आगै हुई गुदरण हुकम दीआ ढंढोरा दीवाय(४९) पारीउर वार सारै दीना १२ अमारी वरताईः जीण वेल श्रीजी हुकम दीना तीणवेला दरीषन(५०) जुडथा श्रीजी झरोषै बैठा था राजा रमदासजी आगै था तीण पाछै फुरमान लीयः पंः विवेकह [ हर्ष ] (५१) तिण पाछैः पंः उदैई ( हर्ष ) थाः पछ अमारी आसरी विनती की श्रीपातिसाहजी हुकम दीना (५२) ततकालीः तीणवेलाः जीसा दरीषना जुडसु तीण समना ये लेष माह सरब लीष छै Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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