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________________ २१२ जैन साहित्य संशोधक लंका, श्याम, वर्मा आदि स्थानो में बुद्ध निर्वाण के नहीं तो बौद्ध गणना और 'दिगंबर जैन ' गणना से आज २४५८ वर्ष बीते मानते हैं। सो यहां मिलान अर्हन्त का अन्त बुद्ध-निवार्णसे १६-१७ वर्ष पहेले खा गया कि महावीर, बुद्ध के पहले निर्वाण-प्राप्त हुए; सिद्ध होगा. जा पुराने सूत्रों की गवाही के विरुद्ध पडेगा। विजयसेन सूरिने आगराना संघे मोकलेलो सचित्र सांवत्सरिक पत्र. आ साथ जे एक चित्र आपेलुं छे, ते तपागच्छना हतुं. ए बाबतनो पण थोडोक उल्लेख उपर्युक्त पुस्तकमां सुप्रसिद्ध आचार्य विजयसेनसूरि उपर संवत् १६६७ मां को छे. संवत् १६५२ मां हीरविजयसूरि स्वर्गस्थ आगराना जैन संघे मोकलेला एक सांवत्सरिक-क्षमापना थया अने तेमनी पाटे विजयसेनसूरि अधिष्ठित्त थया. पत्रनुं छे. सांवत्सरिक-क्षमापना पत्र एटले शु ए जमे ते बनाव पछी १० वर्षे एटले संवत् १६६२ मा अकजाणवानी इच्छा होय तेणे अमारुं विज्ञप्ति त्रिवेणी नामर्नु बर बादशाह गुजरी गयो अने तेनी गादिए जहांगीर हिन्दी पुस्तक वाचवू. ए पुस्तकमां अमें एवी जातना आव्यो. अकबर बादशाहे हीरविजयसूरिना उपदेशथी पत्रा-के जेने विज्ञप्ति पत्र पण कहेवामां आवे छ नुं पोताना साम्राज्यमां पर्युषणा विगेरेना दिवसोमा जे जीव विस्तृत वर्णन करेलुं छे. हिंसा-निषेधना फरमान आदि बहार पाङ्या हता ते आ सचित्र पत्र मुनिराज श्रीहंसविजयजी महाराजना जहांगीरे रद कर्या हता एटलं ज नहीं पण जैनोना धर्मशास्त्र-संग्रहमांथी मळी आव्यु छे. मूळ पत्रना कोईए बे गुरुओ उपर पोतानी खफगी जाहेर करी अनेक रीते ककडा करी नांख्या छे अने तेमां पहेला ककढाना मथा- तेमने कनडवानी पण तेणे शुरुआत करी हती. ळानो केटलोक भाग जतो रह्यो छे. आ बन्ने ककडाना विजयसेन सूरिना शिष्य समूहमा महोपाध्याय विवेकभेगी लंबाई एकंदर लगभग १३ फूट जेटली छे अने हर्ष गणी करीने एक महान् विद्वान् अने अनेक राज. पहोळाई १३ईच छे. पहेला अने बीजा ककडानी बच्चेनो दरबारोमा घणुं मान सन्मान पामेला प्रभावशाली यतिकोई चित्र-भाग जतो रह्यो छे के, छे ते बराबर छे, ते वर हता. तेमणे संवत् १६६८ नी सालमा आगरामां जाणवानु कशं साधन नथी. चित्रसमूहनी नीचे विज्ञप्ति- चातुर्मास को अने राजा रामदासादि द्वारा जहांगीर लेख छे अने तेणे एकंदर ३-७ जेटली जग्या रोकी छे. बादशाहने मळीने पोतानी विद्वता अने शांतवृत्तिथी ___ आ सचित्र पत्रनी पूरेपूरी विगत समजवा माटे, एने तेने संतुष्ट करी तेनी पासेथी, ते सालमां, तेना राज्यमां लगतो थोडोक इतिहास अहिं आपवो आवश्यक छे. पर्युषणाना दिवसोमां जीवाहंसा न थवा पामे तेवु फर जगद्गुरु श्रीहरिविजय सूरि अने तेमना पट्टधर आ- मान बहार पडाव्यु. महोपाध्यायना आवा सुकृत्यथी चार्य विजयसेनसूरि-बने जैन इतिहासमां सुप्रसिद्ध छे. आगराना जैन संघने घणो आनंद थयो हतो. तेणे हीरविजयसूरिने मुगल सम्राट अकबर बादशाहे केवी रीते पोताना ए आनंदने गच्छपति आचार्य के, जे ते वखते पोतना दरबारमा बोलाव्या हता अने केवी रीते देवपाटण (काठियावाड ) मां चातुर्मास रहेला हता तेमनो आदर-सत्कार कर्यो हतो, ए विगेरेनो इतिहास तेमनी अगळ प्रकट करवा माटे उत्तम चित्रकार पासे अमारा कृपारसकोष नामना पुस्तकनी प्रस्तावनामां वि- सुन्दर अने भावदर्शक चित्रपट्ट तैयार करावी सांवत्सरिक स्तार साथ आप्यो छे. हीरविजयसूरि ज्यारे बादशाहनी क्षमापनाना पत्ररूपे तेमनी उपर मोकल्यु. आ चित्रपट्ट. अनुमति लई पाछा गुजरातमां आव्या त्यारे एक-बे मां केवी रीते महोपाध्याय विवेकहर्ष गणी राजा रामवर्ष पछी बादशाहे विजयसनसरिने पण पोतानी पासे दासने साथे लई जहांगीर बादशाह पासे फरमान मेक्व mar अटे तेमनुं पण ते सारं सन्मान कयु वानी प्रार्थना करे छे; ते मळ्या पछी केवी मते उपा Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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