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________________ २०० जैन साहित्य संशोधक प्रमाणे एम लाग्युं के नग्न दशा छोडी आपणे हवे श्वेत लागी. तेथी तेमने व्यवस्थित करवानी जैन समाजने वस्त्र पहेरवां जोईए. एथी उलटुं केटलाक साधुओ धमधि- अत्यंत आवश्यकता लागी अने टेटलामाटे आखरे संप्रताथी ए विचारने वश न थतां पोताना वर्गना साधुओने दायना एक मुख्य आचार्य देवर्धिनी देखरेख तळे गुजमाटे निर्वस्त्र रहेबानो फरजीयात विधि बनाव्यो, अने रातमां आवेला वल्लभी नगरमां एक सभा भरतेमनाथी अलग थई दूर जता रहा. दुर्भिक्ष पछी ज्यारे वामां आवी. फरीथी देश आबाद थयो त्यारे ते पेला साधुओ पाछा आ दंतकथा उपरथी एम जणाय छे के श्वेताम्बरोए आव्या परन्तु तेमनी गेरहाजरीमा श्वेतवस्त्र पेहरवानो . " सुरक्षित राखेला जैन सिद्धान्तग्रंथो ई. स. पहेलांना नियम रूढ थई गएलो होवाथी तेओ त्यांना साधुओ लगभग चौथा सैकाना अंत अथवा त्रीजा सैकाना प्रारंभ साथे भेगा मळी शक्या नहीं. आ गते दिगम्बरो अने __ जेटला जुना छे, कारण के पाटली पुत्रनी सभा लगमग श्वेतांबरोनी भिन्नताना पायो नंखायो. आना परिणामे [ई. स. पूर्वे ३०० मां थरली; अने ते वखते ज आ पाटलीपुत्रमा संगृहीत थएला धार्मिक ग्रंथोने दिगम्बरो आगमो संगृहीत थया हता. आ हकीकत उपरथी सूचित ए मान्य राख्या नहीं अने तेथी तेओ कहेवा लाग्या के थाय के के ए ग्रंथो ते वखत पहेलो पण विद्यमान होवा अमारा 'पूर्वो' अने 'अंगो' नष्ट थई गयां छे. शरुआतमां जोईए अने जैन दंतकथा पण एम कई छे के महावीरे पा. आ विभाग बहु महत्त्वनो न तो परन्तु केटलाक सैका पछी नाना पाने प्रथम पो भीखल्या हत एटले लगमग ई. स. ७९अगर८२मां आ विभागोए चुस्त- अने ते पूर्वो उपरथी गणधरोए नवां ' अंगो' बनाव्यां रूप धारण कयु. विभक्त थवा विष बेऊ पक्षनु एकमत्य छ, हता. पूर्वो' एटले 'पहेलां'ना ग्रंथो अर्थात् ' अंगो' नी परन्तु विभक्त थवाना वर्ष माटे ३ वर्षनी भिन्नता जोवामां । पहेला थएला ग्रंथो. पाटलीपुत्रनी सभा वखते, जैनोना कहेवा न आवे छ. आ समये विहार प्रांतमाथी नीकळीने जैनधर्मे प्रमाणे ते ग्रंथोमानो केटलोक भाग नाश पाम्या हतो, धणी दूर सुधी पोतानो प्रसार कर्यो हतो तथा पोतानी अने तेथी बाकी रहेला भागने बारमा — अंग' तरीके केटलीक संस्थाओ अने पक्षो वधार्या हता; अने आपणे संग्रहीत करवामां आव्यो. एक जैन दंतकथा एम जणावे आगळ जोईशं के आ वखते तेमणे मथुरामां पण एक के के मळमां जे सिद्धान्त ग्रंथो हता, तेमाथी बाकी रहेला सारी संस्था स्थापी हती. तवारीख उपरथी एम जणाय ग्रंथोने पाटलीपुत्रनी सभामा पुनः संशोधित करी ते समकेके आ प्रमाणे विस्तृत थवानी प्रवृत्ति खास करान, यने अनकल आवे तेवा नवा रूपमा गोठववामां आव्या. है स. पडेलानां त्रीजा सकामां श्वेताम्बराचार्य सुहस्तिन् जैन धर्म अने तेना इतिहास विषे आ प्रमाणे दंतना समयमां वधी हती. कारण के से वखतनी पट्टावलीमा रामा कथा ओ छे. त्रीसेक वर्ष पहेला आ दंतकथाओने बिल. विभागो अने उपविभागोनी असाधारण भरती जोवामा कल बेवजद गणवामां आवती हती, परन्तु हवे तेवी आवे छे. अने एटलुं तो निश्चित ज छे के ई. स. पहे- वृत्तिने, जैन साहित्यमा देखाई आवती ऐतिहासिक चोकलांना बीजा सैकानी मध्यमां जैनधर्म ओरीसाना दक्षिण .. " साई अने झीणवटने लीधे सखत फटको लाग्यो छे. गत । भाग सुधी पहोंची गयो हतो. केम के कटक आगळना वर्षोमां प्रो. जेकोबी, प्रो. ल्युमॅन अने में प्रसिद्ध करेला खंडगिरि पर्वतना खारवेलना लेखमां जैनोनो खास उल्लेख जैन पुस्तको उपरथी आ दंतकथाओनी सत्यता विशेष थएलो छे. मालुम पडती जाय छे. प्रो. जेकोबीए जैन सिद्धान्त काळक्रमे पाटलिपुत्रमा संगृहीत थएला जैन सिद्धान्तो ग्रंथोनी भाषा अने शैलीनी बारीक तपास करीने तेमना फरी केटलीक अव्यवस्थामां पड्या, अने हस्तलिखित पुराणपणा विषेनुं पोतानुं प्रामाणिक मत प्रसिद्ध कयु छे, प्रतोना अभावने लीधे तेमना नाशनी पण तैयारी थवा तो पण ज्यां सुधी आ दंतकथाओ विषे अचुक अने Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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