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________________ अंक ४] डॉकहार्मलना जैनधर्म विषना विचागे. १९७ पहेला जैन धर्मना अस्तित्वमा घणाओने अश्रद्धा रहेली ळथी, बीजा लोकोने पण दाखल करवामां आव्या. हती. परंतु उपर आपेली महावीरना जीवननी रूपरेषा ब्राह्मण संन्यासीओ आवा ब्राह्मणेतर संन्यासी वर्गों तरफ उपरथी जणाशे के तेमनुं जीवन बुद्धना जीवन करतां घृणानी नजरथी जुवे, ए स्वाभाविक छ, अने तेथी तेमचोकस भिन्न ज छे. नामां परस्पर भेद भाव अने विरोध उत्पन्न थाय ए पण तेटलं ज स्वाभाविक छ. आ कारणथी ब्राह्मण संन्यासी- . सिद्धान्तो अन व्रत-नियमोना साम्यनी बाबतविषे बो ओनी जेम जैन अने बौद्ध श्रमगोए एकला कर्मकांडने लतां पहेलां मारे जणाव, जोईए के बौद्ध अगर जैन ए खरी ज तिलांजली आपी अटकी नहीं रह्या, पण तेमणे एक रीते धर्मो थी परंतु एक जातनी साधु-संस्थाओ छे. युरोपमा पगलं आगळ जई वेदाध्ययन पण बंध कर्यु, के जेने जेम डॉमिनिकन्स अने फ्रान्सीस्कन्स जेवा साधुसंप्रदायो __ लोधे तेओ खरी रीते ब्राह्मणधर्मथी बिल्कुल छूटा पड्या. छे तेवा आ पण भिक्षुसंप्रदायो छे. बंने ई. स. पूर्वे प जैनधर्म अने बौद्धधर्म ए सुधारक पक्षनी चळवळो होई पांचमां सैकाना आरंभमां अने छठ्ठा सैकाना अंतमां " खास करीने तेओ वर्णाश्रम सामे बंड उठावनार छे, एवं स्थपायेला छे. ए वखते उत्तर हिन्द मां धार्मिक चळवळ वळ जे मत अद्यापि पचलित जणाय छे ते तद्दन खोढुं छे. परजोशमां चालती हती. एवा घणा संप्रदायो ए वखत तेओ तो फक्त ब्राह्मण संन्यासीओना स्वातंत्र्य सामे ज उद्भव्या हता. परंतु तेमां आ ब ज प्रचलित रही शक्या. विरोध उठावे के. वर्णाश्रम धर्म उपर तेओनो धसारो तीजो संप्रदाय 'आजीविको' नो हतो, जेना विषे में उपर नथी. तेमना संप्रदायोमां पण, जो के उघाडी रोते बधाने कहेलुं ज छे. आ उपरथी एम नहीं मानवान के आवा अवकाश छे एम जणाववामां आवे छे, छतां घणा भागे भिक्ष संप्रदायो ते वखतनी परिस्थिातमा खास सुधारारूप मात्र उच्च वर्णाने ज दाखल करवामां आवे छे. एक वात अगर नवा ज हता. आवी संस्थाओ मूळ चालता आ- खास जाणवा जवी छे, के आ पन्थोने माननारा गृहस्थ वेला ब्राह्मण धर्ममां पण हती. ब्राह्मण धर्ममां चार लोको साधारण रीते धार्मिक बाबतोमा पोताना पंथना आश्रमो विहित छे; जेम के विद्याभ्यासने माटे ब्रह्मचया- व्रतनियमोने ज अनुसरनारा हता, तेम छता, गर्भाधान, श्रम,, पछी गार्हस्थ्य, पछी एकांतवास माटे वानप्रस्थ, अने लग्नविधि, उत्तरक्रिया विगेरे संस्कारोमां तेओ ब्राह्मणत्यार बाद छेलां वर्षों माटे संन्यस्त. आ संन्यासी ओनी , धर्मना उपाध्याय ने निमंत्रता हता. बौद्ध अगर जैन ढबे ज जैन अने बौद्धना संप्रदायो ई. स. पूर्व छठा सै- भिक्ष मो ते लोकोना धर्माचार्य तरीकेन काम करता, कामां अस्तित्वमां आव्या हता. फेर मात्र एटलो ज के जक परंतु ते मनुं गोरपदं तो ब्राह्मणो ज करता रहेता हता. जैनो तथा बौद्धोनी माफक ब्राह्मणोए मोटी भिक्षुसंस्थाओ। रची न हती. ए धर्मोए ब्राह्मण संन्यासीओना विधि- आ उपरथी जणाशे के बौद्ध अने जैनधर्ममां घj नियमोनुं ज अनुकरण कर्यु हतुं. अने तेथी ज बौद्ध अने साम्य होवार्नु कारण तेमना वखतनी परिस्थिति ज हती. जैनोमां साम्य होवानुं कारण मळे छे. अहिंसानो सिद्धान्त बाकी सिद्धांत अने प्रक्रिया विषयक तेओमा घणी भिन्नजे बौद्धो अने जैनोमां खास अगत्यनो गणाय छे ते मूळ ताओ छ, अने ते एटली बधी तथा एटली झीणवटवाळी ब्राह्मण धर्मना संन्यासीओमाए पळातो हतो. काळक्रमे अने परिभाषिक छे के आवा नाना लेखमा हुँ भाग्ये ज ब्राह्मणधर्ममा एवी एक वृत्ति उद्भवी के संन्यस्त आश्र- तेनुं विवेचन करी शकुं. तेम ज तेवु विवेचन घणाने ममां ब्राह्मण शिवाय बीजा लोको दाखल थई शके नहीं; नीरस पण लागे. जेमने तेमां रस पडे एम होय तेमने अने प्रायः ए कारणने लोधे ज, ब्राह्मणेतर ज्ञातिओ माटे प्रो. जेकोबीनां जैन सूत्रोना भाषांतरोनी प्रस्तावनाओ आ जैन अने बौद्ध संन्यासी आश्रम स्थपाया हता. एमां जोवा मारी भलामण छे. थे बाबतो के जेना विषेनो पण प्रथम तो क्षत्रिओने ज अवकाश हतो. परंतु पाछ- उल्लेख बीजे कोई ठेकाणे थयो नथी ते, मारा मत प्रमाणे, Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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