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________________ १८५ जैन साहित्य संशोधक धमां आनी पछी पवित्र जीवन गाळवा संबंधी, साधुना थता गया अने जैनधर्मनी संस्थाओ सुदृढ रीते स्थिर परिषहो संबंधी, जेमा खास करीने तमना मार्गमां बता- थती गई. नविन साधुने जीवाजीवर्नु बराबर ज्ञान वधारे ववामां आवतां प्रलोभनो तथा असाधुजनो तरफथी उपयोगी मनातुं होय तेम लागे छे. कारण के आ विषय मळता शारीरिक कष्टो संबंधी, तथा धर्मना आदशभूत उपर एक मोटूं अध्ययन आ प्रथना अंते आपवामा महावीरनी स्तुति विषयक अध्ययनो आवेलां छे तनी आव्यं छे. जो के आ आखा ग्रंथमां आवेला जुदा जुदा पछी बीजा पण तेवा ज विषयोपर अध्ययनो छे. बीजो बधां अध्ययनोनी पसंदगी तथा गोठवणीमां काईक योजश्रतस्कंध जे लगभग संपूर्ण गद्य मां ज लखाएलो छ तेमां ना जेवी देखाय के खरी परंतु ते सघळां अध्ययनो एक पण आवा ज प्रकारना विषयोनु निरूपण करेलुं छे. परन्तु ज कर्ताना रचेला छे के लेखी अगर मौखिक परंपरागत तेना विविध भागो वच्चे कोई पण देखीतो संबंध जोवामां साहित्यमाथी चूंटी काढेला छे, ए एक विचारणीय बाबत आवतो नथी. आ उपरथी वे स्कन्ध अनुपूर्तिरूपे गणी छे. कारण के आवा प्रकारनुं साहित्य जैन संप्रदायमां, शकाय अने तेथी ते पाछळना कालमा प्रथम स्कंधमां तेम ज अन्य संप्रदायोमा पण, धर्मशास्त्र ग्रंथोनी रचनानी थएलो एक उमेरो छे. प्रथम स्कन्धनो उद्देश स्पष्ट रीते पूर्वे वर्तमान होवू ज जोईए. माझं एम मानवु छे के आ जुवान साधुओने मार्ग बताववानो छे.' तेनी रचना शैली अध्ययनो प्राचीन परंपरागत साहित्यमाथी ज उदृत करी पण आ ज प्रयोजनने उपकारक थाय तेवी राखवामां लीधेला छे. कारण के तेनी वर्णनशैली तथा भाषाशैली आवी छे. तेमा घणा छंदोनो पण उपयोग करवामां परस्पर भिन्न होय तेम स्पष्ट जणाई आवे छे. अने ते आव्यो छे, जेथी तेमां कवित्वनो पण समावेश थएलो बाबत एक ज कर्तानी कल्पना साथे संगत थई शकती छ एम मानवू जाईए. आमांथी केटलीक गाथाओD रूप नथी; अने आम मानवानुं बीजु कारण ए छे के वर्तमान कत्रिम लागे छे अने ते उपरथी ए ग्रंथ एक ज कर्तानो | सिद्धांतोमा घणा ग्रंथो आ ज प्रकारे उत्पन्न थया छ, एम रचेलो होय तेम आपणे मानी शकीए छीए. बीजो मान्या विना छट को नथी. कया समयमां आ प्रस्तुत ग्रंथो स्कन्ध प्रथम स्कन्धमा चर्चेला विषयो उपर लखेला रवामां आव्या अथवा तो वर्तमान स्वरूपमां मुकवामां निबन्धोनो एक समूह होय एम जणाय छे. आव्या ते प्रश्ननो संतोषदायक निर्णय करी शकाय तेम उत्तराध्ययन अने सूत्रकृतांग बन्ने सूत्रोनो उद्देश तथा निा उदश तथा नथी. परंतु आ ग्रंथनो वाचनार स्वाभाविक रीते ज आ . तेमां चर्चाएला केटलाक विषयो परस्पर समान छ, बाबतमा भाषांतरकारनो अभिप्राय जाणवानी आशा परंतु सूत्रकृतांगना मूळ भाग करतां उत्तराध्ययन वधारे राखतो होवाथी, हुं अत्यंत संकोचपूर्वक मारो मत जाहेर लांबं छे तेम ज ते सूत्रनी योजना पण वधारे कुशळता- क छ के. सिद्धान्त ग्रंथोना घणा खरा भागो, प्रकरणों पर्वक करवामां आवी छे. तेनो मुख्य आशय नविन तथा आलापको खरेखर जुनां छे. अंगोनु आलेखम साधने तेनी मुख्य फरजोनो बोध आपवाना, तथा विधि अने प्राचीन काळमां (परंपरानुसार भद्रबाहुना समयमां) उदाहरणोदारा यति जीवननी प्रशंसा करवानो, तेना दक्षिा- .. निा, तना दाक्षा. थयु हटुं; सिद्धान्तना अन्य ग्रंथो काळक्रमे घणुं करीने काळ दरम्यान आवटा विघ्नो सामेचेतवणी आपवानो, तथा वणी आपवाना, तथा ई. स. पूर्वेनी पहेली शताद्विमां संगृहित थया हता. अलंक तात्विक ज्ञान आपवानो पण छे पाखंडीमतोनुं घणाक परंत देवधी गणिए सिद्धान्तोनो आ छेल्ली आवृत्ति तैयार ठेकाणे सूचन मात्र करवामां आव्यु छ परंतु तेमने विस्तृत करी ( वि. सं. ९८० ई. स. ४५४ ) त्या सुधी तेमा रीते चर्चवामां आव्या नथी. ते दिशामाथी आवतां विघ्ना उमेराओ तथा फेरफारो थता गया हता. जेम जेम वखत जवा मांड्या तेम तेम स्पष्ट रीते ओछा उत्तराध्ययन अने सूत्रकृतांगर्नु भाषान्तर, में,मने मळे. पराणी परंपरा अनुसार दीक्षा लीधा पठी चार वर्ष वाया ली साथी प्राचीन टीकाओमां स्वीकारेला मूळना आधारे पाच मुत्रकृतांगनुं अध्ययन कराक्थामा भावतुं हतं. करेलुं छे. आ मूळ, हस्तलिखित अन्य प्रतिओ तथा Aho Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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