SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन साहित्य संशोधक- परिशिष्ट. ४६ वि० सं० १४ (८७- १ ) ५७ वर्षि सूरीपद हूओ । श्रीगुरु भुजपसनई, अंजारई, मांडवी, प्रमुष नगरे बिच रता चउबारी नगरीई महाक्रियावंत महिमामंदिर गुरू प्रतिदेषी तिहां कोइक स्टt द्रव्यलींगी द्रव्यदेवं शस्त्र'वारक पुरुषनई गुरुबातार्थि सज्ज कीधो । ते दुर्बुद्धि-वसती गुरु वातार्थि गुप्तपणई रह्यो । जेतलई अनुचित काम करवा उद्यम करई तलई चंद्रमाने अजूआलई श्रीगुरु रजहरणि निद्रा मांहि पुंजी पासुं पालटयूं । वधकारक पुरुष चितव्यं जे निद्रामांहि पण जेहनई जीव उपरई एहवी कृपा छई, एहवा महापुरुषनो वध करी मुझनीं कुण गति जावं । एहवा विचारी परलोक थकी बीहतो श्रीसूरीनई नमी स्ववरे पोहतो | तिहां की गुरु विहार करता केतक दीने मालव देशि आमझरे नगरई आव्या | एहवई सो० संग्राम प्रगट थयो, तेहनो संबंध कहे छे । सो० संग्रामसिंह - देवां, सहित डावी गुजरात देशि बढीयार खंडे लोलाडा ग्रामि प्राग्वाट वृ० पूस गोत्री सोनी अवकई संग्राम नाम रहे छई । ते कोइ समयानुयोगि मालव ( ८७-२ ) देशि पोsa ढि चिकथा श्रीयादनिने राज्ये, माता नांम स्त्री नाम तेजां, पूत्री नाम हांसी, ए. परिवार जेतलई मांडवगढि नगरनी पोलि पइसई तेहवई दिशि महामणीधरें फूण कीधो छई अनि तेह उपरि दुर्गा पठि सहर्षित शब्द करई छ । ते रिज देषी सपरिवार संग्राम उभो रह्यो । एहवई तिहां एक आहेडी उभो छ । ते संग्रामने देशांतरी जाणी कहई ए शकुनी जे नगरमा पइसई तेहने ते महारुद्धिना देणहार छै | तेह चिकथा श्री ग्यासदीन हज्जूर रहई | ते शब्द अनि शकुन सांभली चिंत्त घरी सहर्ष ओछाइ सो० संग्रामई नगरपोलि प्रवेश कीधो । राजदरबार पास आवी रह्यौ । अल्प द्रव्य थकी थोड़ २ तेल, नाना प्रकारनो घी, गुड, हिंग, मिरची, साकर, श्वेत, रक्त वस्त्र, पुनः सौगंधिक प्रमुषनो व्यापार करई । पून्य प्रमाणि सुषि तिहांकाल नीगमी । एकदा उष्ण कालि चि० श्रीग्यासदाने असवारी कीधी । एतलई बणा तापयोगि पूणि अच [ खंड १ चिकथा स्वदरबारनी ( ८८ - १ ) वृक्षवादीकाई, सुंद राकार शाषाई, प्रतिशाषाई, हरिकुंपल पत्रई, मनोहर सुबटाई, शीतल सुछाया दीषी उभा रही वीसामओ लेइ स्वस्त हूई । ते सहकारनें देखी आरामिकनई चिकथा कई 'सब आंबक फल हई पिण इस आंचिकू फल क्यूं नहीं' तिवारे आराभिक कहई ' पा० तिलाभित इसू आबके दर्खतमे सब गुण अछे, पिण एक अएब बुरी हई, जे फल नहीं । बांजीए आंब हई ।' एहवो वचन पुष्पपालकनो सांभली श्रीग्यासदीन कहई ' इसू बांझीए आंबकी सूरतदेषी कूण कांमका । इसे वाडीसे काट डा लौ । ' एहवई पुन्योदय थकी सो० संग्राम पिण ते वाटिकानई जुई छ । तिणि चिकथा कहिण सांभली मनस्युं विचारि जे ए उत्तम नवपल्लव वृक्ष ते तूरत काढसिहं, एहनई हु अभयदान देउ | धर्म प्रभावि महा मंगलिक हुई । तिहिज बेलाई दृढ चित्तई संग्राम सकल जन देवतां चिकथा श्रीग्यासदीनने सिलाम करी अरजी 1 करई छई - ' जे ए आंच जन्मवंध्य हई पिण मुजे एक मुह ( ८८ - २ ) मांग्या दीओ | महा पसाय करो । आवतई जेष्ठ मासें इंसू आंबक फल श्रीपातसाहकु भेट करूं । ' ते अचिरज वात सांभली चिकथा संग्राम नई कहई - ' आवतई जेष्टी इणि दिने ईस आंबके फल न लाया तओ इसू आंबा जैस हवाल तैसे तेरा हवाल | ते बात संग्राम अंगिकार कीधी । चिको १, अनि संग्रामर स्वघरि आव्या । पूर्वोदयना योग थकी सो० संग्रामनो अत्र थकी भाग्योदय हुआ । ते बात सबली मातानई स्त्रीनई कही । हवाई संग्रामई ते सहकारनई पछवाडई किनायत तथा चंदुआ बंधावी स्नात्रादिक सुचि हूइ पवित्र वस्त्र घरी निर्मल चितें धूप, दीप, चंदन, अक्षत, पुष्प ते आबांन अर्चई एतले शील गुणई साहसीक जांणीनई, पूर्वभवी वणिक सा० आंबो नाभि द्रव्य धारक इणि स्थानिके रहितो, 'ते वांझियो मरण पांमी इणहीज स्वद्रव्य स्थानिके बीजें भवई आंचो वृक्ष हुआ । ते आंवानां जीव आवी संग्रामनई कहई ते मुझनि अभ यहान दीवो छई तेह थकी हुं तुंज प्रति तूठों | ए Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy