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________________ जैन साहित्य संशोधक-परिशिष्ट. ३८ । नगरी चउमाई रह्या । एतलि पुनः मं० वस्तुपाल बीजी वार संघपति हूओ | श्री सोमप्रभ सूरी, श्री मणि रत्न सूरी, आ० श्री जगचंद्र सूरी, आ० श्री देवेंद्र सूरी उ० श्री देवभद्र सहित श्री सिद्धाचल यात्रा जातां मार्गि श्री वढवाणि नगरे संघ उ ( ७२ - १ ) तथ्यौ । तिहां श्री मालिशा ० वृ० सा. रत्ने दक्षिणावर्त शंखनें माहेमाई सप्त दिन ताई नाना विधि सुखाशिकानई भोजाने तथा वस्त्र आभूषण पहिरामणी सकल संचनई कीधी । तिहां थकी मंत्री मोरवी प्रमुष नगरे स्व ज्ञाति साधम्मिक प्रति नगरें नगरे गामिं गामिं पकवान आभूषण वस्त्रई संतोषतो हूओ । श्री सिद्धाचल, श्री गिरिनारनी यात्रा करी देव पाणी संघ आग्यौ । तिहां मंत्रीई नूतन प्रासाद निपजावि श्रीचंद्रप्रभ स्वामिनो बिंब थाप्यो । श्री सोमप्रभ सूरी १ श्री जगचंद्र सुरी २ प्रतिष्ठयौ । तिहां मंत्रीइं स्वज्ञात घणुं संतोषी सधम्मिकीन संतोष्या अणहिल पाटणि संघयुक्त श्री सूरी अनि मंत्री आव्या । उ० श्री देवभद्र, श्री जगचंद्र, श्री देवेंद्र, श्री सोमप्रभ सूरीनी आज्ञा लही पाल्हणपुरई चौमासाई रह्या । श्री सोमप्रभ सूरी अंकवालीई चोमासी रह्या । श्री मणिरत्न सूरीई हिंदुआणि देशि विहार कर्यो । श्री सत्यपुर चोमासी रह्या । श्रीवंत मंत्री संघ यात्राना मनुष्य मनुष्य प्रति पाणि सुवर्ण मुहर दीधी । चउमासई उतरई पाल्हणपुर (७२-२ ) थकी उ० श्री देवभद्र आ० श्री जगच्चंद्र सूरी, श्री देवेंद्र सूरी विहार करता आबु, दाहि आणाक, नंदिय ब्राह्मण वाटक इतीयादि तीर्थ फरसी अजारी नगरई श्री वीर मासादे श्री सुरी अटम कर्ष श्री । ब्रह्माणी प्रसन्न हूई कहि तुझ किर्ति हुसि । ए सारदा दत्त वर लेई श्री सुवा देसि विहार कीधो । एहवि श्री सोमप्रभ सूरी एक शब्दना शत अर्थना कर्ता, पुन: श्री सिंदुर प्रकरण ग्रंथना कारक श्री श्रीपालि नगरि स्वर्ग हूओ |१| अनि लघु गुरु भाइ श्री मणिरत्न सूरी नवतत्व प्रकर्ण कर्ता मिस अंतरि श्री थिराद्र नगरई स्वर्ग हूया | २| हवि मंत्रि वस्तुपालनई अणहिल पनि ? आसा [१ पल्ली २ खभायांत ३ प्रमुष नगरि छप्पन्न कोटि द्रव्य भूमध्ये जुइ २ शांति ते उपरि देवसनिधिओ मेरी शब्द हुई...ते समय द्रव्य सुकृति कीधो ते कहछई - अढार कोटि द्रव्य तीर्थ यात्रामें उजमणि व्यय कीधा । आबु, पाटण, वडनगर, खंबायत, देवकि, पाटण, भृगुकच्छ, गुज्जा, थुडिआला, सांडरा, प्रमु (७३-१ ) ष नगर पच हजार प्रासाद नीपजाव्या । सवा लाब जिन बिंब निपजाव्या । ते मांहि एकतालिस हजार सुवर्ण -पीतल धातुमयि जाणवा । श्री तारणगिरी, श्री भीलडी नगरि, श्री ईडरगढि, श्री विज्जानगरि, श्री शंखश्वरि, श्री विज्जापुरी चिंतामणि पास प्रासादि, पुरहातिज पद्मप्रभ प्रासादि. इत्यादि नविश शत जिर्णोद्धार निपजाव्या । नव शत अनि चउरासी धर्म्मशाला निपजावी । पांच शत समोसरण निपजाव्या । पुनः देवकि पाटणि ज्ञान कोश ईग्यार लिषावी साधाव्या । बत्रीस हजार श्वेत. चंदननी ठवणी, उगाणीस हजार रहिछ नीपजाबी । बहिताली स हजार सांपुडी कवली नीपायी । पुनः स्मरणी श्वेत चंदन, मोती, प्रवाला, सूत्र, प्रमुधनी नोपजावी, नगरी गा मे २ देशदेशांतरे : पुण्यार्थे दीधी | पुनः द्रव्य संख्या कह छई – आठकोडी अनिं त्राणु लाख टका यात्रा स्नात्र प्रासाद बिंब थापनई, श्री पुंडरिक गीरीई, आत्म हेतूना कारण मादि सुकृति वावया ? || पुनः अढार कोटी अनि आसी लक्ष टका श्री रेवताचलि सुक्र (७३-२) तिई कीधो २ । पुनः बारकोटि अनिं त्रहिपन्न लक्ष अधिक श्री अर्बुदाचले सुकृति कीथा ३ । एतले ए ओगणीस सयकोटी, अनि आसी कोटि, अइसी लक्ष, हजार, नवस अनि तांं टका ते नव चउकडीई उणा एतलो द्रव्य मंत्री श्री वस्तुपालई त्रिहूं तिथे सुकृति कीवो । पुनः कवित्तः पांच अरबन सरब कीवां जेणे जीमण बारह | सात अरबनें खरब दीघ व परिवारह | द्रव्य पंख्यासीय कोडी दीत्र भोजक वह भट्ट । सत्ताणु सग्र कोडी फूल तंबोली हट्ट | Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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