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________________ डॉ. हर्मन जेकोबीनी कल्पसूत्रनी प्रस्तावना. वामीने कहेला छे. घणुं करीने तो महावीरना जो ते वखते विक्रम संवत् ४७० वर्ष पहेलां थएली सिद्धान्तो अने इ.ब्दो मूळमां-प्रारंभमां जुदा जुदा मनाती हशे तो ते वी. नि. ९८० नी साल ई. स. ग्रंथो रूपे रचायाज न हता. परंतु भद्रबाहुना ४५४ नी बराबर थाय छे, परंतु ते वखते जो वी. समयमां अगिआरे अंगो मोजुद हतां एम हकिकतो नि. नी तारीख आपणे उपर जे नवीन निर्णीत उपरथी जणाय छे, कारण के तेमणे ए अंगोनी करी छे ते प्रमाणे मनाती हशे तो ते साल ई. स. व्याख्या रूपे केटलिक कृतिओ करी हती. उपर ५१४ नी बराबर थाय छे. जिनप्रभमुनि अने पद्मटांकेली भद्रबाहु अने स्थूलभद्रनी कथानो भावार्थ मन्दिरगणी लखे छे के देवर्धिगणीए ज्यारे ४५ जोतां मालुम पड़े छे के पाटलीपुत्रना संघे आगि. आगमो-सिद्धान्तोने नष्ट थवानी तैयारीमा जोया आर अंगोनो संग्रह को हतो. त्यार बाद सूत्रोमां त्यारे तेमणे वलभीपुरना संघनी मददथी ते घणा फेरफारो थ्या होवा जोईए. अने आ वात पुस्तकारूढ कराव्या. एम कहेवाय छे के प्राचीनस्थानांग सूत्रथी साबीत पण थई शके छे. ए सू- कालमा आचार्यो पोताना शिष्योने पुस्तकनी अपेक्षा त्रनां ७ मा स्थानमां, सात निन्हवोन वर्णन करेलु सिवाय ( ' पुस्तकानपेक्षया') ज सूत्र शिखवता छे. आ साते निन्हवोना संबंधमां आवश्यकसूत्रमा हता. पण पाछळथी पुस्तकोनी सहायताथी शिखवविशेष विवेचन आपवामां आवेलं छे. आमांनो वानी शरूआत थई. अने जैन उपाश्रयोमा ए प्रथा सातमो निन्हव वीर निर्वाण पछी ५८४ वर्षे प्रादु- हजीपण चाली आवे छे. आ वृद्ध संप्रदायनो अर्थ भूत थयो हतो एम लखेलु छे. आ उपरथी एवं एम नथी के देवधिगणीए पहेलीज वखते जैनोना फलित थाय छे के महावीर पछी छठी-सातमी सदी पवित्र ज्ञानने पुस्तकारूढ कराव्यु; पण तेनी एटलीज सुद्धामां पण सूत्रो महत्वना परिवर्तनोना पात्र थई मतलब छे के, प्राचीन काळमां आचार्यों लिखित शकता हैता. पुस्तको करतां पोतानी स्मृति उपरज वधारे आधार छेलामां छेल्लु जैनसूत्रो, पुस्तकाधिरोहण सामान्य राखता हता. अने प्राचीनमान्यताना आधारे वी. सं. ९८० मां जैनधर्मना बुद्धघोष देवर्धिगणीए खास करीने देवर्धिगणि क्षमाश्रमणे कयु.* वीरनिर्वाणनी तारीख, समग्र साम्प्रदायिक जैन साहित्य के जे तेमने ते वख १ उत्तराध्ययननीका जेवा वधारे अर्वाचीन ग्रंथोमा अ- ' ल्पतर विसंवादी निन्हवोनी संख्यामां बीजा एक नवीन मळ्यु हतु ते बधु, आगमोना रूपमां तेमणे गोठव्यु. बहुतर विसंवादी निन्हवनो उमेरो पण थएलो छे अने ए आ कार्य घणु मोडं थयुं हतुं, कारण के ते वखते घणाक निन्हव ते वी. नि. संवत् ६०५ मा उत्पन्न थएलो दिगम्बर आगमो तो त्रुटित थई गया हता अने तेना मत छे. दिगम्बरो श्वेताम्बरोनी उत्पत्ति गुप्तिगुप्त नामना स्थविरना वखतमां, जे संवत् ३६-४६ मा थई गया हता, अमुक अमुक त्रुटक भागोज बाकी रह्या हता. आ ते वखते थएली बतावे छे. आ समयथी मात्र ३० वर्ष पहेलांज एटले सन् ४१० ___ *आ नांध साथे, कल्पसत्र अने ऋषिमंडलसूत्रनी स्थ. अने ४३२ नी बच्चे बुद्धघोषे बौद्ध पिटको अने अर्थकथाओविरावलीओ छल्ला स्थविर तरीके देवर्द्धिगणन जे नम आपे ने, धर्मनी चिरन्तन स्थिरताने माटे पुस्तकोमा लखावी. छे ते, अने आवश्यक अने नन्दीसूत्रनी स्थविरावलीओ देवः सीलोनमा बौद्धग्रंथो, अने गुजरातमा जैन ग्रंथो लगभग धिगणी सुधीनां स्थविरोनां नाम आपतां छतां पण तेमनो समान कारमांज पुस्तकारूढ थया ते उपरथी एवं अनुमान (देवर्धिगणीनो) जे नामनिर्देश करती नथी ते,-आ बन्ने थई शके के जैनोए बौद्धोनी आ प्रवृत्तिनु अनुकरण कर्यु हकिकतो, बहु संगत थाय छे. ए उपरथी एQ अनुमान हशे. अगर तो हिंदुस्थ नमां पांचमी सदीथीज साहित्यना थाय छे के तेमणे नन्दी अने आवश्यक सूचना प्रारंभमा हेत्वर्थे लेखन ( कळा ) नो वधारे उपयोग थवा आ स्थविरावली मूकी हशे. लाग्यो हशे. धमान Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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