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________________ अंक डॉ. हर्मन जैकोबीनी कल्पसूत्रनी प्रस्तावना. छे. आ बाबतने धर्मनी साथे कोई संबंध नथी. आ आ शब्दो बपराया छ तओना माप उपरथी जणाय छ ज्ञातिभेदो तो मात्र सामाजिक भेदो छ अने ते भार. के मूलमां-सूत्रनी रचना करनाराओना समयमां तवासीओनां मगजमां एटला तो ऊंडा जड घालीने -ए शब्दोनुं उच्चारण : अग्नी ' ' आचार्य , 'सुह्म बठे । छे के तेमने धार्मिक सुधारकना शब्दो बील विगेरेना रूपमां थतुं होवु जोईए. जो ते वखते आ कुल खसेडी शके तेम नथी. बौद्धधर्मना लेखोमा प्रमाण उच्चारण न थतुं होत-अने सूत्रकारोनी अनेक देकाण ब्राह्मणोनो उल्लेख थएलो छे, पण ते- भाषा पण सर्वथा हालना लिखित सूत्रांना जेवीज टला उपरथी कोई बौद्धधर्म उपर ज्ञातिरूपी धार्मिक होत - तो तेओ पण---सघळी प्राकृत भाषाओने योजनाने स्वीकारवानो आरोप न मकी शके. बीजी सरखी रीते लागु पडता स्वरशास्त्रना नियमो तेमनी दलील एवी करवामां आवे छे, के जैनोनी प्राकृत भाषाने पण लागु पडेला होवाथी-ए शब्दोनो भाषा करतां बौद्धोनी पालिभाषा वधार परातन छेउच्चार तेम न करी शक्या होत. आ विषयना विअनेटला माटे ते बौद्धधर्मनी पर्वकालिकता स्थापन स्तृत विवेचन माटे हुं वाचकने " Zeitschrift करवाने एक प्रमाण छे. जो के आ दलील तद्दन fur rergleichenile Sprachforschung" v. साची छे. तो पण ते कोई बाबत सिद्ध करी XXIII; p. 50-1, Sq| जोवानी भलामण करूं छं. शय.ती नथी. कारण केहं आगळ उपर बनावीश ते आ श्रोडीक हकिकतो उपाथी समजी शकाय छे. के प्रमाणे जैनसूत्रो जे रूपमा हालमा विद्यमान छ ते सूप भ पार्नु अनुक रूप जैन साहित्यनी प्राचीनतानी महावीर निर्वाण पछी एक हजार जेटलां वर्षों बाद विरुद्धमा दलील तरीके रजु करी शकाय तेम नथी, अने नकी करवामां आव्यं हतुं. आ उपरथी एटलं तो ज्यार आम छ तो पछी तेवी दलीलने जैनधर्मने तके-सिद्धज छ के ते पहेलांनां एक हजार वर्षोमा बौद्धधमेथी अवोचीन स्थापित करवामां प्रमाण तरीए सोनी भाषामां घना फेरफारो थया होवा जो- के तो लेवायज केम ? अंतमां, आपणे वळी जाणीए ईए. कारण के जे आचार्यों मुखथी अथवा लेखथी छीए क जैन साहित्यनो चौदपूर्वना नामे ओळखापोतानी शिष्य परंपराने ए सत्रो सोंपता गया होय. तो एक भाग ता नष्ट ५ई गयो छ; अने ते कई तेमनं स्वाभाविक वलण, ते सूत्रोनी भाषाना जे जनां भाषामा रचाएला हतो ते आपण बीलकुल जाणरूपो प्रचलित भाषामांथी अदृश्य थया होय तेमना ता नथा,* बदले वर्तमान वाक्पद्धतिप्रमाणेना रूपोनो व्यवहार आपणे उपर जायुं ते प्रमाण जैनोनां पवित्र सूत्रो करवान थाय. ए नि:संशय छे. दाखला बिम्बिसार अने अजातशत्रना समयने महावीरना तरीके, मध्ययुगना जर्मन लेखकोना ग्रंथाना उतारा. जीवनसमय तरीके बनावे छ. हवे जैनधर्म ते परा ओ पण, उतारा करनाराओनी देश तथा कालनी तन कालमा हतो के नहीं तनी एतिहासिक दृष्टिए भाषामांज थया हता, एम स्पष्ट जोवाय छ आवी शाध करवानी जरूरत छे. सूत्रामा जैन यतिओ माटे वस्तुस्थिति होवा छतां पण एक उदाहरणमां मळभा- बहु प्रचलित प.ब्द ' निग्गंथ ' अने साध्वीओ माटे पानी निशानी रही गई छे त स्पष्ट बतावी आपले के निर्माथी ' मळी आवे छ वराहमिहिर अने हेममूळ भाषा, सूत्रोनी हालनी भाषाथी, अन्य घणा आका टलाक अल्प प्राचीन जैन ग्रंध मा उल्लेख करेलो जोरोनी माफक एक विशेष आकारमा जुदी पडे छे... वामां आवे छे के चौदपूर्वांनी रचना संस्कृत भाषामां थएली दाखला तरीके, सूत्रोमां वपराएला ' अगनी ' 'आ- हता. डॉ. जेकोब नी जाणमां ते वखते ए उल्लेखो नहीं चारिय' ' सुहम ' विगेरे शब्दो लईए. जे छंदोमां आव्या होय.---जै. सा. सं. संपादक, Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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