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________________ १०४ जैन साहित्य संशोधक [ भाग १ पंजाब-युनिवर्सिटिमें जैन साहित्यको स्थान । आप स्वयं भी प्राकृत के अद्वितीय विद्वान हैं, आर . जैन साहित्यसे हार्दिक प्रम रखते हैं । बंबई और कलकत्ता युनिवसिटिमें तो आज कई वर्ष चूं कि पंजाबमें संस्कृत पढनेवाले जैन विद्यार्थी हुए जैन साहित्यको कितनाएक स्थान मिल चुका है। परंतु. बिरले हैं, इस लिये अन्य धर्मी विद्यार्थीयों को जैन पंजाब-युनिवर्सिीटमें अभीतक उसे किञ्चित् भी अवकाश साहित्य की और लाने के लिये एक वजीफा नहीं मिला था। उसमें कारण केवल पंजाबके जैन भाईयों- ( Scholarship ) की आवश्यकता है जिस को की अनभिज्ञता और उपेक्षा ही है। पंजाबके जैनिय में स्थायी रूप देने के लिके रु० १०००० चाहिए। मामली शिक्षाका भी बड़ा भारी अभाव है तो फिर ऊंची जो महाशय इस खाते में दान देना चाहे वे इसी कक्षाकी शिक्षाके बारेमें तो कहना ही क्या। यही सबब है पत्र द्वारा सूचना देवे ताकि रुपया शाघ्र युनिवर्सिकि आजतक पंजाबमें, अन्य धर्माय संकडों ही ज्युएट टिमें भेजने का प्रबन्ध किया जावे।" संस्कृतके पारंगत विद्वान् हो गये हैं परंतु जैनियोमें वैसा एक स्कालेशिपके लिये जो सूचना बनारसी दासजीने इस निवेभी मनुष्य नहीं था । हमें यह जान कर प्रसन्नता हो रही है दनमें की है उसकी तरफ हम प्रत्येक विचारशील और उदाकि पंजाबके जैन समाजकी इस न्यूनताकी पूर्ति करनेवाला रचित्त भाईका लक्ष्य खींचना चाहते हैं। खास कर पंजाबी एक पुरुष तैयार हो गया है और वह है लुधियाना निवासी जैन भाईयोंको इस विषयमें पूरा खयाल करना चाहिए और श्रीयुत लाला बनारसी दास जैन । बनारसी दासजीने एम्. अपना कर्तव्य बजाना चाहिए । ए. तककी ऊंची शिक्षा प्राप्त की है और संस्कृत-प्रारुतका अच्छा ज्ञान प्राप्त किया है। आपका एक इंग्रजी लेख जै. सा. अशुद्ध-संशोधन. सं. के प्रथम अंकमे प्रकाशित हो चुका है । आप लाहोरके गया अंकमां प्रकट थएला श्रीयुत हीरालाल ओरिएन्टल कालेजमें प्रोफेसर हैं। आपने हाल ही में बहुत अमृतलाल शाहना “हरिभद्रसूरिनो समयनिर्णय" कुछ परिश्रम करके पंजाब युनिवर्सिटिकी एम्. ए. की परी. शीर्षक लेखमां भ्रमथी एक-बे ठेकाणे अशुद्ध पाठ क्षामें जैन साहित्यको उचित स्थान दिलाया है और उसके छपाई गयो छे, तो ते नीचे प्रमाणे सुधारी वांचशुभ समाचार जैन साहित्य संशोधक में प्रकट करने के लिये वानी भलामण करवामां आवे छे. भेजे हैं जो आपहीके शब्दोंमें नीचे प्रकट किये जाते हैं: _पृष्ठ ४१, कालम २, पंक्ति १३-१४ मां नीचे प्रमाणे __ "बडे हर्ष की बात है कि पंजाब युनिवर्सिटिने पाठ छः-- अपनी ( संस्कृत की) सब से उच्च परीक्षा अर्थात् 'आ ५९८ ने वर्तमान गणतरीए गणाता गुप्त एम० ए० ( M. A. ) में जैन फिलॉसफी तथा सा- संवत् तरीके....' हित्य को भी स्थान दे दिया है। इस वर्ष निम्न तेना बदले नीचे प्रमाणे यांचलिखित ग्रन्थ नियत हुए हैं: 'आ ५९८ ने मारी गणतरी मुजबना मूळ १ स्याद्वाद मञ्जरी (संपूर्ण)। गुप्त संवत् तरीके....' २ सूत्रकृतांग (प्रथम के ६ अध्ययन)। तेवीज रीते, तेनी नीचे पंक्ति २४ मां नीचेप्रमाणे ३ उत्तराध्ययन (प्रथम के दस अध्ययन)। पाठ छ४ जैन साहित्यका संक्षिप्त इतिहास (अंग्रेजी)। गुप्त संवत् ५९८....सिद्धर्षिए श्रीचन्द्रकेवली चरित्र रच्य। इसके लिये सारी जैन समाजको श्रीयुत ए० तेने नाचे प्रमाणे सुधारी वांचवूसी० चूल्नर ( Captain A. C. Woolner )- 'गप्त संवत् ५९८....सिद्धर्षिए ( श्रीचंद्रकेवली लाहार के आरिएन्टल कालजक प्रिसापाल-को चरिखमा जणाव्या मजब ) ग्रन्थ रचना करा.' धन्यवाद देना चाहिये जो कि इस देशमें जैन साहित्य के प्रचार का बडा प्रयत्न कर रहे हैं। Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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