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________________ डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावना अंक २ ] तरीके स्वीकारेलो छे, अने ब्राह्मणेतर जातिना पुरुषोने माटे पण तेमणे तेनो प्रयोग करेलो छे. आ स्थळे जणाववुं जोईए के जैनो तेमज बौद्धोनो भिक्षमार्ग, ब्राह्मणोना संन्यासमार्गना अनुकरणरूप होवा छतां, ते मूळमां तथा मुख्यरीते क्षत्रियो माटेज योजापुलो हतो. प्रो. ओल्डनवर्गना दर्शा· व्या मुजब बुद्धे प्रथम पंतिमां उमराव अने अमीर लोकोनेज स्थान आप्यं हतं. कारण के, बनारसमां आपला पोताना प्रथम उपदेशमां, बुद्धे पोताना धर्म ना संबंधां कह्यं हतुं के ' यस्सत्थाय कुलपुत्ता सम्मदेव अगारस्मा अनगारियं पव्वजन्ति - जेने माटे कुलीन जातिना पुत्रो घर छोडीने अनगारता स्वीकारे छे. २ जैनो पण ब्राह्मणो करतां क्षत्रियोंने उच्चकोटिना मानता हता, ए बाबत, महावीरना गर्भसंक्रमना संबंधमां जे एक आश्चर्य भरेली पुराण कथा प्रसिद्ध छे ते उपरथी साबीत थाय छे. ते दंतकथा एवी छे के - महावीरनो गर्भ देवानंदा ब्राह्मणीनी कुक्षिमांथी त्रिशला क्षत्रियाणीनी कुक्षिमां फेरववामां आव्यो हतो. अने ते करवानुं कारण मात्र एटलुंज बताव वामां आव्युं छे के ब्राह्मणी अगर अन्य कोई नीच जातिनी स्त्रीता उदरथी तीर्थकरनो जन्म थई शके नहीं'. १ Buddha, sein Leben, &c, p. 157sey २. महावग्ग १, ६, १२. ३. दिगंबरो आ दंतकथाने युक्तिशून्य कही, एनो अस्थीकार करे छे. परंतु श्वेतांबरो तेने दृढतापूर्वक साची जणावे छे. आ दंतकथा आचारांग तथा कल्पसूत्र आदि घणा ग्रंथो मां मळी आवे छे, तेथी तेनी प्राचीनतामां तो आपणने शंका रहती नथी. परंतु ए कोई स्पष्ट समजातुं नथी के कया कारणथी आ युक्तिशून्य दंतकथा उत्पन्न थई लोकमां प्रचार पामी हशे ? आ अंधकारग्रस्त प्रश्न उपर मने जो अभिप्राय आपवानी छूट होय तो, मारुं तो एवं मानवु छे के सिद्धार्थने ब्राह्मणी देवानंदा - जे महावीरनी साची माता हती ते - अने क्षत्रियाणी त्रिशला एम बे स्त्रीओ हती. पहेली स्त्रीना पति तरीके बतावामां आवतुं ऋषभदत्तनुं नाम घणुं प्राचीन होय तेम लागतुं नथी. कारण के जा ते प्राचीन होय तो तेनुं प्राकृत रूप ' उद्यमदत्त ' यवाने बदले प्रायः 'उसभदिन्न' एजु ८५ बीजी बाजुए जोतां ब्राह्मण संन्यासिओ प पोताना जेवाज परम आस्तिक ब्राह्मणेतर जातीय संन्यासिओने स्वसमान उच्च कोटिना न होता मानता. कारण के पाछळना समयमां एवो मत प्रचलित थपलो स्पष्ट देखाय छे के ब्राह्मण सिवाय अन्य कोई वर्णने चतुर्थ आश्रमनो अधिकार हतो नहीं आ मतना प्रमाणमां, प्रो. बुल्हरना जणाववा प्रमाणे, मनुनो ६, ९७ मो श्लोक बताववामां आवे छे. परंतु, भिन्न भिन्न टीकाकारोना अभिप्राया तरफ दृष्टिपात करतां आ लोकना अर्थना संबधमां बधा टीकाकारो एक मत थता जगाता नथी. तेथी आ विवादग्रस्त उल्लेखने बाजुए मूकीए तो थवं जोईए. विशेषमां, आ नाम पण एक जैनने छाजे तेवु छे; ब्राह्मणने छाजे तेवुं नथी. तेथी मारुं तो एम चोक्कस मानवु धाय छेके ऋषभदत्त ए फक्त जैनाए देवानंदाना बीजा पति तरीके एक कल्पी काढलो पुरुष आपणे जाणीए बीए के सिद्धार्थ पोताना विशला साधेना लग्नद्वारा अनेक ऊंची पदवीवाळा अने मोटा प्रभाववाळा पुरुषो साथै संबंध धराक्तो हतो. तेथी कदाचित् एवो विचार तेने उत्पन्न थयो होय, तो ते संभावित छे के महावीरने त्रिशलाना सपनत तरीके प्रसिद्ध करवाने बदले औरस पुत्र तरीके जो जाहेर करवामां आवे तो बयारे लाभदायक बाबत बनशे. कारण के तेम करवार्थी, महावीर त्रिशलानां प्रभावशाली सगओना आश्रयनो हक्कदार बनी शकशे. आ दंतकथा लोकोमां विश्वासपात्र पण घणजि सलाईथी मनाई गई हशे कारण के महावीर तीर्थकर तरीके प्रसिद्धिमां आव्या तेनी पहेलां घणां वर्षो अगाउ तेमनां मातापिता गुजरी गयां हतां. परंतु खरी वस्तुस्थिति लोकोनी स्मृतिमांथी सर्वथा लुप्त नहीं थ होय तेथी पाळधी गर्भसंक्रमनी आ कथा उपजावी काढवामां आवी हशे . आ कल्पनाना मूळ उत्पादक जैनों नथी. तेमणे तो मात्र देवकीनी कुक्षिमांधी रोहिणीनी कुक्षिमां थरला कृष्णना गर्भसंक्रमनी पौराणिक कथानुं स्पष्ट रीते अनुकरण कर्यु छे. आ उपरथी एम पण जणाय छे के जैनधर्मना विका सनी प्रथमनी सदीओमा कृष्णनी उपासना लोकप्रिय थई रही हती. कारण के जैनोए पोताना वावीशमा तीर्थंकर अरिष्टनेोमि जे एक प्रसिद्ध यादव हता, तेमनुं चरित्र लखवामां केटलाक फेरफार सिवाय कृष्णनुं अखं जीवन यथार्थ रीते आलेखी दोधुं छे. Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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