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________________ अंक २] लेसननी चोथी दलील उपर आबुं छं. ते दलील ए छे के बौद्धों तेमज जैनो बन्ने जगत्ना इतिहासनुं परिमाण बताववामां पटली मोटी काळसंख्याओ वापरे छे के से समर्थमां समर्थ कल्पना शक्तिने पण आंजी नाखे छे अने त्रस्त करी दे छे. इत्यादि. अलबत, ए वात तो खरी छे के आ विषयमा जैनो बौद्धोने पण पाछळ पाडी दे छे. परंतु, आ प्रकारनी कालगणनामां जैनो मात्र बौद्धोनेज मळता आवे छे एम कांई कही शकाय नहीं. ब्राह्मणानां पण आ बाबतमां तेवांज वर्णनो आपणने मळी आवे छे. जैनांनी कालगणनात्मक पद्धतिनां परिमाणो ब्राह्मणो तेमज बौद्धो बन्नेथी सरखी ररीत जुदां पडे छे. जैनोना उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणीरूप कालचक्रनी तथा ते दरेकना छ छ आराओनी कल्पना जेटले अंशे यौनाना चार महाकल्पों तथा ८० नाना कल्पो के जे विश्वना कमथी थता सर्ग अने प्रलयरूपी नाटकना अंको तथा यो जेवा लागे छे, तेमनी - कल्पनाथी भिन्न छे, तेटलेज अंशे ते ब्राह्मणोनी युगो ने कल्पांनी कल्पनाथी पण भिन्न छे. मारो एवो मत छे के बौद्धोनी कल्पना ते ब्राह्मणोनी युगपद्धतिनुं संस्कारित रूप छे अने जैनांना उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणीरूप कालकनी कल्पना ब्रह्माना दिवस अने रात्रिनी कल्पनाने आधारे उत्पन्न थपली छे डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रांनी प्रस्तावना प्रो. लेसननी त्रीजी दलीलनी चर्चा उपर मुलतवी राखवानुं कारण एटलुज हतुं के ते दलील आहंसाना सिद्धान्त विषयक होवाथी तेने, ए बन्ने धर्मोना अन्य नीतिविषयक विचारी साथै वधारे सारी रीते चत्रानी आवश्यकता है प्रो. बरे जैनोना पंचमहाव्रतो अने बौद्धोना पांच मुख्य पापो अने शीलोनी बच्चे खास निकटवर्ती संबंध बताव्यो छे; अने प्रो. विन्ड ( Windisel ) जैनांना पंच महाव्रतोनी, बौद्धोनां दश शीलो ( दससील) साथै सरखामणी करी छे. 1. Fragment der Bhagavati, II, pp. 175, 185. २. Z. D. M. G.XXVIII, p. 222, note, ४ ७९ बौद्ध भिक्षुना दश शीलो नीचे मुजब छे:१ हुं प्राणीनी हिंसा न करवानुं व्रत लडं छं. २ हुं चोरी न करवानुं व्रत लडं हूं. ३. हुं अब्रह्म - अपवित्रताथी विरमवानुं व्रत लडं छं. ४ हुं असत्य न बोलवानुं व्रत लडं कुं. ५ हुं प्रगति अने सदाचारनं प्रतिबन्धक एवं मद्यपान न करवानुं व्रत लडं छं. ६ हुं निषिद्ध काले भोजन न करवानुं व्रत लउं छं. ७ हुं नृत्य, गान, संगीत अने नाटकोथी विरक थवानुं व्रत लडं हुँ. ८ हुँ हार, सुंगंधी लेपन तथा अलंकारो न वापरवानुं व्रत लउ छं. ९ हुं ऊंची अगर पहोळी पथारीनो उपयोग नहीं करवानुं व्रत लडं छं. २० हुं सुवर्ण तथा चांदीनों परिग्रह न करवानुं व्रत अंगीकार करूं छं. आ उपरांत बौद्धधर्ममां अष्टांग शीलो ( अहंगसील) मानेला छे. तेमांनां पहलां पांच दरेक बौद्धे आचरवानां छे; परंतु छेलां त्रण खास करीने धर्मिष्ठ गृहस्थाने तो अवश्य पाळवा माटे भलामण करेली छें. ए अष्टांग शील आ प्रमाणे छेः १. हिंसा न करवी. २. चोरी न करवी. ३. असत्य भाषण न कर, ४. मद्यपान न करयुं. ५. ब्रह्मचर्य पाळं ( अधर्म्य एवो परस्त्रीसंग न करवो. ) ६. समयविरुद्ध रात्रिए भोजन न कर ७. हार. वंदन आदि सुगंधी पदार्थों धारण न करवा. ८. जमीन उपर मात्र सादडी पाथरीने बु. पांच महाव्रती साथै लगभग मळतां आवे छे.बौद्धानां पांच व्रत, नीचे आपलां जैनयतिओनां १. अहिंसा - प्राणीनी हिंसा न करवी. २. सूनृत - जूनुं न बोलधुं. ३. अस्तेय - नहीं आपलं न लेवु. १. २. Rhys Davids, Buddhism, p. 160. Rhys Davids, Buddhism, pg. 139. Aho ! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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