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________________ डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावना अंक २ ] करनारो होय तथा मातामहं साथे लडाई लडनारो होय तेवा माणस अध्यात्मज्ञानने माटे बहु उत्सुक बने ते असंभवित लागे छे. धर्मपरिवर्तन करवामां तेनो वास्तविक शो उद्देश हशे तेनुं आपणे सहे लाई अनुमान करी शकए छीए. तेनो उद्देश्य बीजो कोई नहीं पण जेम तेना पिताए पोताना राज्यमां (मगधमां ) अंगदेशनो उमेरो कर्यो हतो तेम तेने पोताना ताबाना मुलकोमां विदेहने उमे - रानो हतो. आ कारणथी तेणे प्रथम विदेहनी वृज जातिने ताबे करवामाटे काढी मुकवा माटे नहीं - पाटलिग्राममा एक किल्लो बंधाव्यो इतो अने आखरे पोताना मातामह वैशालीना राजा साथे छे; जुओ, Keru, Der Buddhismus und sein Geschichte in Indien, I, p. 249 [p. 195 of the original],अने तेज प्रमाणे जैनोए पण निरयावलीमां ही आपली छे. १ जुओ उपर. २ महापरिनिव्वान सुत्त १. २६. अने महावग्ग ६, २८, नीचे कोष्टकमां महावीर अथवा तो अत्यारे आपणे तेमने जैनोना तीर्थकर तरीके नहीं संबोधता होवाथी, कहषु जोईए के वर्धमान या ज्ञातृपुत्रे - ना लगाओनो पारस्परिक संबन्ध बतावयामां आवे छे. सुपार्श्व 1 सिद्धार्थ नदिन वर्धमान () स्त्री यशोदा ७३ युद्ध कर्यु हर्तु आ राजा महावीरनो मामो होवाथी अने तेथी जैनोनो संरक्षक होवाथी, एना उपर करेली चढाईना परिणामे जैनोनी सहानुभूतीने ते खोई बेढो हतो. आधी पछी तेणे जैनोना प्रतिस्पर्धी बौद्धोना पक्षमां भळवानो निश्चय कर्यो हतो; के जे बौद्धोने पोताना पिताना मित्रो होवाना सबसे प्रथम तेणे त्रास पण आप्यो हतो. आपण जाणीए छी के अजातशत्रु एक तो वैशालीने जीतवामां सफळ थयो हतो; तथा बाजुं तेणे नन्दो अने मौर्योना साम्राज्यनो पायो नांख्यो हलो. आवी रीते मगध साम्राज्यनी सरहद वधवाथी जैन अने बौद्ध ए बन्ने धर्मो माटे एक नवं क्षेत्र खुलुं युं हनु अने तेथी तरतज तेओ ते क्षेत्र उपर प्रसरी गया हता. ज्यारे बीजा केटलाक संप्रदायो मात्र स्थानिक अने अचिरस्थायी महत्त्वज प्राप्त करी अटकी गया हता; त्यारे ए बन्ने धर्मो आटली मोटी सफलता मेळवावा समर्थ थई शक्या हता तेनुं मुख्य कारण बीजुं कांई नहीं पण आ मंगलकर राजनैतिक संयोगज हतो. त्रिशला उर्फे विदेहदला पुत्री अनोज्जा जमालि साधे परणी पुत्री शेषवती अहीं मारो इरादो महावीरमुं संपूर्ण जीवन-चरित्र आपवानो नथी परंतु मात्र केटलीक एबी बिगतो 1 चेटक वैशालीनो राजा i सुभद्रा सुदर्शना बिम्बिसार चेल्लना कूणिक उर्फे अजातशत्रु उदायिन् पाटलिपुत्रनो क्सावनार, १ पालि तथा प्राकृतमां नातपुत्त बौद्धो तेमने निग ण्ठनातपुत अर्थात् निर्ग्रन्थज्ञः तृपुत्र कहे छे. Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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