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________________ ११८ चित्र - परिचय | مر जैन साहित्य संशोधक १—गत अंकमें जो दर्शनीय चित्र दिये गये हैं उनमें पहला रंगीन चित्र पावापुरीके जलमंदिरका है । पावापुरी पटना जिलेकी सुबै विहार तहसील का एक छोटासा गांव है। जैन समाजकी मान्यता अनुसार श्रमण भगवान् श्रीमहावीर देवकी निर्वाणभूमि यही पावापुरी है । इस लिये जैनियोंका यह एक परम पवित्र तीर्थस्थल है। इस गांव के पास एक कमलसरोवर नामका अच्छा तालाब है। इस तालाब में हमेशा असंख्य कमलपत्र खिले रहते हैं इसलिये इसका नाम भी कमलसरोवर पड गया है । इस सरोवर के मध्य में एक भव्य मंदिर बना हुआ है, जिसमें संगमर्मरके बन हुए भगवान् महावीर स्वामीके पूजनीय चरणोंकी स्थापना की हुई है। मंदिर बडा खुबसूरत और दर्शनीय है। भावुक मनुष्यों के हृदयमें वहां पर जानसे बडी भक्ति उत्पन्न होती है और कुछ काल तक वहां पर बैठ कर ध्यान धरनेसे अपूर्व शान्ति प्राप्त होती है । इसी मंदिरका वह सुन्दर चित्र है । चित्रमें मं. दिर, सरोवर, आसपासके किनारों पर लगे हुए वृक्ष, इत्यादि सभीका मनोहर दृश्य दिखाई दे रहा है । आरा निवासी उत्साही जैन युवक श्रीयुत कुमार देवेंद्र प्रसादजीने अपनी ओरसेही वह चित्र जैन साहित्य संशोधक के पाठकों को भेंट किया है। तदर्थ आप साधुवादके पात्र हैं । २- गतांकका दूसरा हाफटोन चित्र, भारत प्रसिद्ध वीरभूमि चितोड नगरीके समीपमें रहा हुआ इतिहास प्रसिद्ध चितोडगढ (किल्ला) मेंके एक अति प्राचीन जैन कीर्तिस्तंभ ( Jain Tower. ) का है । चितोडके किलेमें दो कीर्तिस्तंभ हैं जिनमें एक जो अधिक ऊंचा और विशेष प्रसिद्ध है वह १५ वीं शताब्दी में सुप्रसिद्ध राणा कुंभा द्वारा बनाया गया है और इससे उसका असली नाम [ भाग १ कुंभमेरु' है। दूसरा स्तंभ यह जैन कीर्तिस्तंभ है। ' कुंभमेरु की अपेक्षा यह जैन कीर्तिस्तंभ बहुत प्राचीन है और पुरातत्त्वज्ञोंने ११ वीं या १२ वीं शताब्दी में इसके बननेका अनुमान किया है । यह किसी दिगम्बर जैनका बनाया हुआ है । क्योंकि इसमें जो जिनमूर्तिमां लगी हुई हैं वे दिग म्बर हैं। I 6 यह स्तंभ ८० फीट ऊंचा है । समुद्रकी सतह से इसकी ऊंचाई १९०० फीट और नीचे की जमीन से ६०० फीट है । यह किलेकी सबसे ऊंची भूमिपर बना हुआ होनेसे इसका शिखर किले के सभी मकानोसे ऊंचा दिखाई देता है। इसके शिखरका जीर्णोद्धार हाल ही में - दस बारह वर्ष पहले-सरकारने बड़ा खर्च करके करवाया है। सारे हिंदुस्थानमें जैनियों का यही एक मात्र महत्त्वका पुरातन कीर्तिस्तंभ मौजूद है । इसका समग्र ऐतिहासिक वर्णन आगेके किसी अंकमें, एक स्वतंत्र लेख द्वारा पाठकों को सुनायेंगे । चित्र में जो दो जुदा जुदा ब्लाक हैं उनमें दाहिनी तरफवाला ब्लाक स्तंभकी उस अवस्थाका द. र्शन करा रहा है जब उसके शिखरका जीर्णोद्धार नहीं किया गया था । बाई तरफका दृश्य जीर्णोद्वारके अनन्तरका है। ३ - इस अंक में करहेड़ाके पार्श्वनाथ जैन मंदि - रका चित्र दिया जाता है। यह गांव उदयपुर [ मेवाड ] राज्यमें आया हुआ है और चितोड उदयपुर रेल्वे लाइन के बीच में पडता है। गांव बिल्कुल छोटासा मामुली है। गांवसे बहार, कुछ फासले पर यह मन्दिर बना हुआ है । मन्दिर ५२ जिनालय है और बडा भव्य है । मन्दिरमें पार्श्वनाथ तीर्थकर की मनोहर मूर्ति प्रतिष्ठित है । पुराने लेखों में इस गांवका नाम 'करहेटक ' ऐसा लिखा हुआ मिलता है । यह मन्दिर १४ वीं शताब्दीके लगभगका बना हुआ अनुमान किया जाता है । ऐतिहासिक वर्णन फिर कभी दिया जायगा । Aho ! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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