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________________ अंक "हरिभद्रसूरिनो समयनिर्णय." गाथाओ उपरथी आपेला सरवाळा मुजब वीरात् ७) गुप्त संवतू ने बदले भूलथी ५८५ ने वलभी ७२७ मां शरु थएलो समजाय छे. वीरात् ६०५ संवत् गणीए तो तेनी बराबर (५८५ मां ३७६. वर्षे अने इ. स.७८ वर्षे शक वर्षनी शरूआत थाय वर्ष उमेरतां) विक्रम संवत् ९६१ आवे. आ साल छ. आ हिसाबे वीरनिर्वाणनो समय ई. स. पूर्व सिद्धर्षि महाराजे पोतानी कथानी प्रशस्तिमा जे ५२७ मां नकी थाय छे. अने ते मुजब गुप्त संवत् ९६२ नी साल आपेली छे तेने मळती आवे छे. वीरात् ७२७ = ई. स. २०० = शक १२२= परंतु प्रश्न ए थाय छे के आवी भूल तेमना समयमां विक्रम संवत् २५७ मां शरु थवो जोईए. आ थवानो संभव खरो? अने सिद्धर्षि महाराजे पोते तेवी भूल गणतरी अनुसार हरिभद्रना स्वर्गवासना गाथोक्त करी होय तेम मनाय खरूं? आ बाबतमां कांई कहीं श५८५ मा संवत्सरने गुप्त संवत् तरीके लेतां, ५८५ काय तेम नथी. परंतु अत्रे उपमिति० पर डॉ. जेकोबीए मां १२२वर्ष उमेरीए तो शक वर्ष ७०७ (५८५+ लखेली प्रस्तावना तथा तेना परिशिष्टाना अंते डॉ. एन. १२२-७०७ ) थाय छे. एटले आ रीते उद्योतन- मीरोनौए आपेला श्लोकन स्मरण अस्थाने नहीं गसूरिए जणावेली हकिकत अने गाथा ऊपरथी णाय. श्रीचंद्रकवलिचरित्रमा, सं. ५९८ मां सिद्धमळती हकिकतनो विरोध निर्मूळ थई जाय र्षिए आ ग्रंथ रच्यो हतो, एम लखेलं छे. आ ५९८ छे. शक वर्ष २४१ मां ( अल्बेरुनीना लेखा- ने वर्तमान गणतरीए गणाता गुप्त संवत् तरीके लेतां नुसार ) जे संवत्सरनी शरुआत मनाय छे ते गप्त ए पूर्वोक्त ५८५ गुप्त संवत्नी नजीक आवी जाय संवत् नथी परंतु गुप्त-वलभी संवत् , अर्थात् वलभी छे. जो आथी सिद्धर्षिनी तारीख निणांत थती होय संवत् छे. आ बाबतनुं विशेष स्पष्टीकरण में मारा तो काळक्रम आ रीते आवे छेगुप्त संवत् परना लेखमां करेलुं छे. गुप्त संवत् माटे वाचकवर्ग आगळ एक उदाहरण रज को गुप्त संवत् ५७८ दाक्षिण्यचिन्हे 'कुवलयमाला 'रची. जकाबाए (हेरल्ड, पत्रव्यवहार पृ. २१ )" , ५८५ हरिभद्रसूरिनु स्वर्गगमन. मुनिसुंदरसूरिनी गुर्वावली परथी उल्लेख . " ५८६ (भूलथी वलभी संवत् गणाईने महावीरनी पट्टपरंपरामा एकत्रीशमा ते परथी लखाएल विक्रम संवत् आचार्य रविप्रभसूरि विक्रम संवत् ७०० मां थया. हेरल्डना ९६२ मा) सिद्धर्षिए उपमिति तेज अंकमां जे पट्टावली मुद्रित छे तेमां (पृ. ३५४ भवप्रपंचा कथा रची. उपर) तेज सूरिने त्रीशमा गण्या छे. ( आटली " ,, ५९८सिद्धर्षिए श्रीचन्द्रकेवलिचरित्र रच्यु. " भूल तो माफ करी शकाय.) अने कहाय के के अत्रे फरी याद देवानी जरूर छे के अहीं आपेलो तेमणे नाखुल नगरमां सं० ९५२ मां श्री नेमिबि. गुप्त संवत् ५८५ ते ई. स. ७८५=विक्रम संवत् म्बनी प्रतिष्ठा करी हती. " विक्रम संवत " ७०० ९६१=शक संवत् ७०७ बराबर समजवो. हुं आ अने “सं." ९५२ मा परस्पर विरोध छे ते सहज प्रमाणे कालगणना नों, छं. ते उपरथी जे निर्णय जणाई आवे छे. परंतु ते ज संवतने आ नवी गण- परिणामे सर्वमान्य थाय ते खरो. बाकी ज्योतिषनी तरी प्रमाणेनो गुप्त संवत् मानीए अने तेमां २५७ गणतरीए गुप्त संवत् ५८५-५८७ मां, एटले ई. वर्ष उमेरीए तो विक्रम संवत् ९५७ मळी आवे छे. स, ७८५७८७ मां नक्षत्र विगेरेनी हकिकत अने आ रीते आ बन्ने लेखोनो परस्पर विरोध टळी जे सिद्धर्षि महाराजे मूकी छे ते जो बराबर मळी जाय छे. रहे, तो भूल थएली छे तेम निश्चित मानी शकाय. Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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