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________________ भक १ हरिभद्रसूरिनो समयनिर्णय. कुवलयमाळानी रचना शक संवत् ७०० मां थई. कवि अने साथेसाथे सिद्धर्षि पण ई. स. ८०० ५. एटले ते उपरथी शक संवत् ७००-विक्रम संवत् हेलां विद्यमान होवा जोईए. [ अत्रे जणाववानी ८३५ ई. स. ७७८ नो समय हरिभद्रसूरिनो जरूर छे के माघ कविनो समय तपासवामां प्रो. निर्णीत थाय छे. मेक्डोनले ए मोटी भूल करेली छे के तेमणे वाम२) ए कथाकर्ता दाक्षिण्यचिन्ह संबंधी हकिकत नाचार्य तथा आनन्दवर्धन संबंधी हकिकत बिल्कुल प्रभावकचरित्रमा ( जुओ, निर्णयसागर प्रेसनी आ- ध्यानमां लीधीज नथी.] वृत्ति, पृ० २०१-२, श्लोको ८८-९७ ) मळी उपमिति०नी प्रस्तावनामां डॉ. जेकोबीए बीजी आवे छे. त्या तेमनो अने सिद्धर्षिनो परस्पर संवाद हकिकतो साथे प्रभावकचरित्रमा जणाव्या मजब मकेलो छ अने साथे सिद्धर्षिना गुरुभाई तरीके माघ अने सिद्धर्षिना कौटुम्बिक संबंधन टेबल आ. तेमने जणान्या छे. आ वात जो सत्य होय तो पेलु छ जे नीच मुजब छे:सिद्धर्षिनो समय पण शक संवत् ७००-ई० स० सुप्रभदेव ( वर्मलाट राजानो अमात्य ) ७७८ विक्रम संवत् ८३५ लगभग आवे. एक . बीजी हकिकत (तेमां केटलं वजुद छे ते तो कहे. . शुभंकर वाय नहीं) पण ध्यान देवा जेवी छे. जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स हेरल्ड नामना मासिकना सने १९१५ माघ सिद्ध ना जुलाई-अक्टोबरना अंकमां, पृ०, ३५१ उपर माघ कवि दत्तकना पुत्र अने सुप्रभदेवना पौत्र एक तपागच्छनी पट्टावली आपली छे. ए पट्टावली- हता, एम तेमणे जाते शिशुपालवधमां लखलुं छे. मां सिद्धर्षिने हरिभद्रसूरिना भाणेज तरीके लखेला राजा वर्मलाट वसन्तगढ़ना लेखमांजणाव्या मुजब से० छे. आ हकिकत अन्यत्र जोवामां आवती नथी. ६८२ मां राज्य करतो हतो. आटली हकिकत आना उपरथी हरिभद्रसूरि, उद्योतनसूरि अने सिद्धर्षि जाण्या पछी एटलुं तो चोक्कस मानवं जोईए के सुप्रत्रणे समकालीन ठरे तेवी सूचना मळी आवे छे. भदेव अने माघ वच्चे ओछामां ओछु पचास वर्षनुं ३) सिद्धर्षिए हरिभद्रसूरिनो अनेक प्रकारे निर्देश अन्तर होवू जोईए. अर्थात् माघ कवि- बालपण संवत् कर्यो छे. एटले तेमनो समय हरिभद्रसूरिना समयनी ७३२ लगभग आवे छे, अने तेज समय सिद्धर्षिनी साथे ज तपासवो पडे छे. उपर जणावेल हेरल्ड मा- पण गणी शकाय. आ संवत् ७३२ ते ई स०६७५ सिकना अंकमां डॉ. जेकोबी तथा श्रीयुत मोतीचंद नी बराबर थाय छे. [ वसन्तगढ वाळो लेख जे संवत् गिरधर कापडिआ बच्चे, सिद्धर्षिना समयना संबंधमां आपे छे ते विक्रम संवत् छे के अन्य कोई संवत चालेलो पत्रव्यवहार छपाएलो छे. तेमां सिद्धर्षिनी छे, ते चोक्कस थवानी जरूर छे. ] तारीख बाबत घणीक चर्चा चर्चाणी छे. सुप्रसिद्ध ४) उपरना बीजा अन त्रीजा फकरामां आपेली संस्कृत कवि माघने प्रभाचन्द्रसरि (प्रभावकचरित्रमां) हकिकत चरित्र उपरथी लीधी छे. तेमां दंतकथा होय सिद्धार्षना काकाना दीकरा तरीके लखे छे. डॉ. ते ना कबुल करी शकाय नहीं. परंतु तेनी तारवणी क. जेकोबीना जणाव्या प्रमाणे (हेरल्ड, पत्रव्यवहार, रतांजो तेमां सत्यांश मळी आवे तो, ते निर्मूल तो नहीं पृ०२४४ ) माघकविना श्लोकोनो उपयोग लगभग ज गणी शकाय. हरिभद्रसूरिनु स्वर्गगमन सूचवनारी ई. स. ८०० मां थएला वामनाचार्ये, तथा ई. स. प्रसिद्ध गाथामां जे ५८५ सुं वर्ष आप्यु छे ते विक्रम ८५० मां श्रएला आनंदवर्धने करेलो छे, माटे माघ- संवत्नुं तो लई शकाय ज नहीं. कारण के हरिभद्र Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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