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________________ इह । भयवं अक जैन आगम साहित्यनी मूळ भाषा कई। - भगवन् ! ( भगवन्तो ! भयवं! . नाथ नाह नाध नाह । भगवन्त ! नाह भवान् भवंतो भवं भगवान् भगवंतो भगवं (भगवं गच्छत गच्छह धध गच्छह गश्वह ति, ते इ, ए दि, दे ति, ते. भवह भवइ (भोदि भवइ-ति होदि २ पुरुष पुरिस पुलिश पुरिस पुव्व पूरव पुव समशरीर समसरीर शमशलील समसरीर कृत्वा काऊण [करिय करिता काष्ट फट्ट कस्ट करिकण करिदूण हस्त (करिअ कडु पट्टन पट्टण पस्टण पट्टण गत्वा (गमिऊण [गमिय (गमित्ता सुष्टु सुट्ट शुस्टु गमिअ गमिदण । गच्छित्ता उपस्थित उवट्रिअ उवस्तिद उवट्रिअ-त (गडुम अर्थ · अत्थ अस्त अत्थ- गमिष्यति गच्छिहिइ गच्छिस्सिदि गच्छिहिइ जनपद जणवय यणवद जणवय इदानीम् एण्हिं दाणि (इआणि अद्य अज्ज अय्य अज्ज एताहे सइयाणिं यथा जहा यधा जहा | इमाणिं अन्य অল্প অল্ম अन्न-0ण (दार्णि पुण्य पुण्ण पुज पुण्ण-न्न तस्मात् तम्हा ता तम्हा प्रज्ञा पण्णा पम्ञा पण्णा सवेज्ञ सवण्णु सव्वञ्ज सव्वण्णु उपरना कोष्टकमां ज्यां में १ नो अंक मूक्यो छे अञ्जलि ( अंजलि अन्जलि अंजलि ते कोष्टक विभक्तिना विकारने लगतुंछे, अने ज्यां में । अञ्जलि २ नो अंक मुक्यो छ ते कोष्टक व्यंजनना विकारने ब्रजति वचइ वझदि सूचवे छे. उपरना कोष्टकमां बतान्या सिवायनी गच्छामि गच्छामि गश्चामि गच्छामि मागधीनी बीजी बधी प्रक्रिया प्राकृतनी जेवी ज छे मोक्ष मोक्ख मोक मोक्ख जो के, उपरना कोष्टकथी अंग साहित्यनां रूपो. यक्ष जक्ख यक जक्ख मागधी भाषानां रूपो साथे केटलं साम्य छ, ते संप्रेक्षते संपेच्छइ शंपस्कदि संपेहह संपेहइ स्पष्ट जाणी शकाय तेम छे तो पण मारे जणावq तिष्ठति चिट्टइ चिष्ठदि जोईए के, आटलां बधां मागधी भाषानां रूपो श्रुत सुअ सुद साथे अंग साहित्यनां मात्र एकाद बेज रूपो अन्तःपुर अन्तेउर उन्देउर अन्तउर साम्य धरावे छे-विभक्तिना विकारमा आवेल तावत् ताव दाव - 'भीमे' अने ' भगवं' (बन्ने, प्रथमानां एक वचन पर्यव पज्जव पय्यव पज्जव , आ कोष्ठकनी वधु समजुती माटे जुओ हेमचं, अष्टम भल्या. वच्च स ताव Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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