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________________ 11 जैन आगम साहित्यमी मूळ भाषा कई ? खेची लाववा प्रयत्नशील देखाय छे. केटलाक वळी तो जैन विद्यार्थिओनी ए फरज छे के तेमणे एवा पण लोको छे, जेमनां मगज पुराणप्रियताना अंतःकरणपूर्वक आ भाषानो अभ्यास स्वीकारी विचारोथी अतिशय संकुचित थएलां जोवाय छे. लेवो जोईए, अने जैनकोमना धनिकवर्गे आ कार्यअने तेथी प्राचीन ग्रंथोमा एक पण भूल या दोष मां विशेष उत्तेजन आपवा, दरेक प्रकारनी, तेमने बताववामां आवे छे तो तेओ खूब चीढाई जाय छे. मदद करवी जोईए. मे सांभळ्युं छे के एक जैन तेमन एम मानवं होय छे के मूळ ग्रंथना कोई पण संस्था जैन-धर्मना विद्यार्थिओने जे मदद जोईए ते लिखित अर्थ या विचारना संबंधमां स्वतंत्र चर्चा बि- सघळी आपवा तैयार छे; तेथी आ विषयना उत्साही लकुल करी शकायज नहीं. परंतु आ मत अत्यारे विद्यार्थिओ आगळ आवी मा महान् कार्यना प्रथम टकी शके तेम नथी. छतां पण एटलं तो जरूर फळो ट्रॅक समयमां बतावशे एम आपणे आशा याद राखवं जोईए के पुराणप्रियताना पण घणाक राखीर छीए.. उपयोगो छे. ते द्वारा आपणने पुरातन परंपराओनो परिचय मळे छे अने घणीक वखते अन्य साधनोना जैन आगम साहित्यनी मूळ अभावे तेज मात्र आपणने मार्गदर्शक होय छे. जो के परंपराओनी पण गंभीरपणे परीक्षा तो करवीज __ भाषा कई ? जोईए; परंतु तेनो सर्वथा त्याग करवो पण कोई अथवा अथवा रीते न्याय्य नथीज. अने आ बाबतमां साधुवर्गेज खास मदद करवानी छे. तेणे पोतानी हमेशनी अर्धमागधी एटले शुं ? चुपकीनो त्याग करी, पोतानी पासे जे परंपरागत मोटो माहीतिओनो भंडोळ होय ते उपासको समक्ष [लेखक-श्रीयुत पं. बेचरदास जीवराज, रजु करवो जोईए. हवे तेओने एवो भय राखवानी न्याय-व्याकरणतीर्थ.] जरूर नी के आम करवाथी कदाचित् तेओ पोताना जैन धर्मन प्राचीन साहित्य, जे अंग, उपांग, धर्मने जोखममां नाखी देशे. कारण के संताडी राख- नियुक्ति, भाष्य अने चर्णि विगेरेना रूपमा अत्यारे वाथी कदापि सत्यनी वृद्धि थई शकती नथी. उपलब्ध थाय छे, ते बधामा विशेषतः प्राचीन ग पण आ बधी व्यवस्था करवा अने जैनधर्मना णातुं अंगसाहित्य कई भाषामां लखायुं छे ! ए अभ्यासने संगीन पाया ऊपर लावी मूकवा माटे प्रश्न अद्यावधि विवादास्पद रह्यो छे. जो धारे तो एक उत्साही अने शक्तिशाळी विद्वन्मंडळे आगळ भारतवर्षना भाषाशास्त्रिओ ए प्रश्नने एक पळमां पण आव जोईए; अने पोताना दृढताभरेला काम द्वारा समाहित करी शके, परंतु ते महाशयो पासे एवा जगतने बतावq जोईए के आज सधीमां शोधाएली अनेक प्रश्नो उपस्थित रहेला होवाथी अत्यार सुधी अन्य ज्ञानशाखाओ जेपी आ पण एक शाखा छे, आ प्रश्नने वगर सत्कारे ज उभा रहेQ पडयु छे. अने ते बीजी बधी शाखाओथी लेश मात्र पण मह- ॐ The study of Jainism ना शिरोलेख नीचे त्वमा उतरे तेवी नथी. सुभाग्ये पवित्र आगमोनी आ लेख, लेखके मुळ अंग्रेजीमां, बराडा कॉलेजना गया भाषामां निपुण थवानी एक मुस्कली तो हवे मंब- फेब्रुआरी मासना मेगेजीनमा, प्रगट कराव्यो हतो. परंतु मख्य करीने जैन समाजमां वंचाववा माटे ज आ लेख ईना विश्वविद्यालये पोताना अभ्यासक्रममा लेखाएलो होवाथी लेखकनी खास इच्छानुसार, अहीं एनो अर्धमागधीने स्थान आपी दूर करी छे, हवे गुजराती अनुवाद प्रकट करवामां आवे छे.-संपादक Aho ! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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