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________________ ज्ञानप्रदीपिका | भ्रातृस्थानयुते पापे पंचमे वाऽशुभस्थिते । नष्टद्रव्याणि केनापि दीयन्ते स्वयमेव च ||२५|| तृतीय स्थान में पाप ग्रह हों या पंचम में हो पाप ग्रह हों तो कोई स्वयं नष्ट द्रव्य दे जायगा । प्रश्नकाले शक्रचापे मेन परिवेष्टिते । ग्रहे द्रष्टुर्न भवति तत्तदाशासु तिष्ठति ॥ २६ ॥ X X X x x X X X X ३१ पृष्ठोदये शशांकस्थे नष्टं कुव्यं न गच्छति । तद्राशिः शनिदुष्टश्चेन्नष्टं व्योनि कुजे न तत् २७॥ पृष्टोदय राशि लग्न में हो, उसमें चंद्रमा बैठा हो तो नष्ट द्रव्य कहीं गया नहीं है ऐसा कहना | किन्तु वह पृष्ठोदय राशि यदि शनि से दृष्ट हो x X X X X बृहस्पत्युदये स्वर्ण नष्टं नास्ति विनिर्दिशेत् । शुकं चतुर्थके रौप्यं नष्टं नास्ति वदेवम् ||२८|| सप्तमस्थे शनौ कृष्णलौह नष्टं न जायते । बुधोदये पुर्नष्टं नास्ति चन्द्र चतुर्थके ॥ २६ ॥ कांसं नष्टं न भवति वंगं राहौ च सप्तमे । आरकूटं पंचमस्थे भानौ नष्टं न जायते ॥३०॥ x x लग्न में गुरु हो तो सोना नष्ट नहीं हुआ। वतुर्थ में शुक्र हो तो चान्दी नष्ट नहीं हुई । सप्तम में शनि हों तो लोहा नष्ट नहीं हुआ। लक्ष में बुध हों तांबा नष्ट नहीं हुआ। चंद्रमा चतुर्थ में हों तो कांसा नष्ट नहीं हुआ ऐसा बताना चाहिये । Aho! Shrutgyanam राहु सप्तम में हो तो गंगा और कांसा नहीं नष्ट हुए। पंचम में सूर्य हो तो पित्तल नष्ट नहीं हुआ। दशमे पापसंयुक्ते न नष्टं च चतुष्पदं । बन्धनादि भवेयुः स्यात्तत्तद्विपदराशयः ॥ ३१ ॥
SR No.009876
Book TitleGyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamvyas Pandey
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1934
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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